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CAA :बेहतर जीवन का विकल्प

-सौम्या तिवारी

सिटीज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट, नागरिकता संशोधन अधिनियम, इसे 2019 में ही राज्य सभा से पास कर दिया गया था। उस समय हमारे देश के गृह मंत्री आदरणीय अमित शाह जी ने ये कहा था कि हम आगामी लोक सभा चुनाव से पहले इसे लागू करेंगे, कई जगह विरोध प्रदर्शन भी हुआ और हाल की बात करें तो केरल में और पश्चिम बंगाल की सरकार ने कहा है कि हम इसे लागू नहीं होने देंगे। तो आखिर ऐसा क्या है सीएए, और इसके पीछे इतना हंगामा क्यों?

सबसे पहले, सीएए में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान की गई है, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था। इसमें कई धार्मिक देशों की तरह किसी को भी धार्मिक आधार पर नागरिकता लेने की अनुमति नहीं दी जाती है। जैसे इज़राइल हर यहूदी को अनुमति देता है। यह संशोधन, नागरिकता देने के लिये किसी एक या दो धर्मों का पक्ष नहीं लेता। यह 6 धार्मिक अल्पसंख्यकों को अनुमति देता है, जिन पर पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर मुकदमा चलाया जाता है। यह अधिनियम देश की धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है, जिसके तहत कई धर्मों के मुद्दों पर निष्पक्ष रूप से विचार किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि, ये अधिनियम किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता वापिस नहीं ले रहा, बल्कि पड़ोसी देशों में रह रहे, अल्पसंख्यक और पीड़ित धर्मों के लोगो को भारत में नागरिकता प्रदान करेगा। इस संशोधन में इस्लाम धर्म को ना रखे जाने का केवल यह कारण है की, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ये सभी मुस्लिम बहुमूल्य देश हैं यहां इस्लाम, अल्पसंख्यक बिल्कुल नहीं है और ये सभी देश धार्मिक रूप से पूरी आज़ादी से इस्लाम धर्म को अपना रहे हैं, तो यहां रहने वाले मुस्लिम, किसी भी प्रकार से पीड़ित हो ही नहीं सकते। हालांकि भारत में मुस्लिम माइनोरिटीज में आते हैं, लेकिन इस संशोधन के तहत उनकी नागरिकता पर कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा। पर फ़िर भी हमारे देश के बहुत से लोग जो सरकार विरोधी सोच रखते हैं, इस अधिनियम के खिलाफ हैं और आये दिन इसे कटघरे में रखा जाता है। एक भारतीय नागरिक और मानव के तौर पर हमें सोचने की आवश्यक्ता है की हमें उन लोगों का भी सोचना ज़रूरी है जो इस देश में बेहतर जीवन बिता सकते हैं पर फिर भी गलत स्थान पर फसे होने के कारण अपने जीवन को बेहतर नहीं बना पा रहे हैं।

Campus Chronicle

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