I have been reading AAVARAN- the veil by S.L Bhyrappa since the last few days and without any ambiguity I will recommend it to everyone. The more I read it the more deeper I delved down. It starts with the story of a progressive, rebellious, feminist girl Laxmi who marries a boy Amir and converts…
‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन…
‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन…
‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन…
[‘युवक!’ शीर्षक से नीचे दिया गया भगतसिंह का यह लेख ‘साप्ताहिक मतवाला’ (वर्ष : 2, अंक सं. 36, 16 मई, 1925) में बलवन्तसिंह के नाम से छपा था। इस लेख की चर्चा ‘मतवाला’ के सम्पादकीय कर्म से जुड़े आचार्य शिवपूजन सहाय की डायरी में भी मिलती है। लेख से पूर्व यहाँ’आलोचना’ में प्रकाशित डायरी के उस अंश…
‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन…
महिला दिवस के अवसर निधि यादव लिखती हैं – उसके सपनों के कत्लों को, लाशों को छुपाते हुए,सब से बचाते हुए,मैंने देखा है एक औरत को! पूरे घर को सींचते हुए,दर-दर पर भीगते हुए,अनचाहे छुए को सहते हुए,फिर भी जिन्दा रहते हुए,मैंने देखा है एक औरत को! अपनी रेखाओं को कोशते हुए,बची उम्र को काटते…
लेखक : नीरजकुमार वर्मा महिला हमारे समाज की वह अंग है, जिसके बिना सब कुछ अधूरा है। महिला का हमारे समाज मे सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके बिना कोई भी पुरुष पूर्ण नहीं हैं। पुरुष का जन्म भी महिला से ही संभव हैं। भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में महिलाओं की स्तिथि को समझते हुए,…
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