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लेखक : नीरजकुमार वर्मा
महिला हमारे समाज की वह अंग है, जिसके बिना सब कुछ अधूरा है। महिला का हमारे समाज मे सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके बिना कोई भी पुरुष पूर्ण नहीं हैं। पुरुष का जन्म भी महिला से ही संभव हैं। भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में महिलाओं की स्तिथि को समझते हुए, समस्त मातृशक्ति को समर्पित करते है उनका दिवस “विश्व महिला दिवस”।
हम महिला के महत्व अथवा उनके द्वारा भारतीय समाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान की बात करें तो हमें अनेक बाते ध्यान में आयेगी जो इस प्रकार है :-
- महिलाओं का स्थान – महिला साक्षात देवी है, उनका सर्वोच्च स्थान हमेशा से हमारे समाज में रहा है और हमेशा रहेगा। महिला पूजनीय हैं, पवित्र हैं। भारतीय समाज के एक प्रमुख उत्सव रक्षाबंधन जो श्रावणी मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, वो पूर्णतः महिला की श्रेष्ठता और पवित्रता को ही दर्शाता है। भारत में वैदिक काल से ही यज्ञोपवीत संस्कार करने का प्रचलन हैं। यह संस्कार पुरोहितों के द्वारा किया जाता था, परंतु समय के अंतराल में जनसंख्या वृद्धि के चलते पुरोहितों के अभाव के कारण घर में ही बहनों द्वारा इस संस्कार को सम्पन्न किया जाने लगा क्योंकि महिला सबसे पवित्र होती है। इसी संस्कार का एक परिवर्तित रूप रक्षा सूत्र बाँधकर रक्षाबंधन उत्सव बनाने का महत्व भी महिला यानि बहनों को समर्पित हैं।
- महिलाओं को सम्मान –
- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः!
अर्थात :- जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।
और - यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः!!
अर्थात :- जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः!
- ईश्वर भी नारी को पूजते– श्रीकृष्ण कहते है कि नारी ही नारायणी हैं, सृष्टि का आधार हैं। जननी परमेश्वर की प्रत्यक्ष प्रतिनिधि हैं। पूरी सृष्टि मुझमें बसती है, परन्तु मैं माता के चरणधूलि में बसता हूँ। जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले विधाता है, उसकी प्रतिनिधि है नारी अर्थात् समग्र सृष्टि ही नारी है, इसके इतर कुछ भी नही है। भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है।
- महिलाओं का योगदान – परिवार व्यवस्था भारतीय सामाजिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है। इसके दो स्तंभ हैं – स्त्री और पुरुष। परिवार को सुचारू रूप देने में दोनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय के साथ मानवीय विचारों में बदलाव आया है। कई पुरानी परंपराओं, रूढ़िवादिता एवं अज्ञान का समापन हुआ है। महिलाएं अब घर से बाहर आने लगी हैं, कदम से कदम मिलाकर सभी क्षेत्रों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दे रही हैं, अपनी इच्छा शक्ति के कारण सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं।अंतरिक्ष हो या प्रशासनिक सेवा, शिक्षा, राजनीति, खेल, मीडिया सहित विविध क्षेत्रों में अपनी गुणवत्ता सिद्ध कर कुशलता से प्रत्येक जिम्मेदारी के पद को संभालने लगी है।
आज आवश्यकता है यह समझने की, कि नारी विकास की केंद्र है और भविष्य भी उसी का है। स्त्री के सुव्यवस्थित एवं सुप्रतिष्ठित जीवन के अभाव में सुव्यवस्थित समाज की रचना नहीं हो सकती। अतः मानव और मानवता दोनों को बनाए रखने के लिए नारी के गौरव को समझना होगा। - भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्तमान परिपेक्ष्य में महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। उनकी इच्छाओं तथा खुशी के लिए हमें उनका पूर्ण सहयोग करना चाहिए। उनको पूर्ण अधिकार देने चाहिए।
- किसी कवि ने लिखा है –
“घर में एक महिला है जो सबका मन रखती है!
बस आप यह न भूलें कि वह भी एक मन रखती हैं!!” इस पंक्ति का सार है कि हमें अपनी माता-बहनों की इच्छाओं को पूर्ण करना चाहिए। उन्हें हर संभव प्रयास से खुशी देनी चाहिए। हमें महिला-दिवस बनाने के लिए केवल एक दिन मात्र पर्याप्त नहीं होना चाहिए, अपितु प्रत्येक दिन हमें महिलाओं के प्रति आदर, सत्कार तथा आस्था भाव से उनका हमेशा सहयोग व सम्मान करना चाहिए। ये ही वास्तव में सच्चा महिला-दिवस बनाने का तरीका हैं।