महिला दिवस के अवसर निधि यादव लिखती हैं – उसके सपनों के कत्लों को, लाशों को छुपाते हुए,सब से बचाते हुए,मैंने देखा है एक औरत को! पूरे घर को सींचते हुए,दर-दर पर भीगते हुए,अनचाहे छुए को सहते हुए,फिर भी जिन्दा रहते हुए,मैंने देखा है एक औरत को! अपनी रेखाओं को कोशते हुए,बची उम्र को काटते […]
Read Moreलेखक : नीरजकुमार वर्मा महिला हमारे समाज की वह अंग है, जिसके बिना सब कुछ अधूरा है। महिला का हमारे समाज मे सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके बिना कोई भी पुरुष पूर्ण नहीं हैं। पुरुष का जन्म भी महिला से ही संभव हैं। भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में महिलाओं की स्तिथि को समझते हुए, […]
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