अब नहीं कोई बात खतरे की
अब सभी को सभी से खतरा है
जॉन एलिया के इस शेर को किसी और संदर्भ में पढ़ते हुए मुझमें इतनी संजीदगी कभी नहीं आई जितनी आज आ रही है। आज से चार महीने पहले जब देश में कोरोना के सौ मामले भी नहीं थे तब किसी को ये आशंका भी नहीं थी कि देश की स्थिति इतनी गंभीर हो जाएगी। देश में लगाए गए चार-चार लॉकडाउन का भी कोई असर नहीं देखा गया। लॉकडाउन में धीमी गति से और लॉकडाउन के बाद उतनी ही तेज़ गति से कोरोना अपने पैर पसार रहा था, तो क्या हम ये मान ले की हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था अब बस लाचारी में इधर-उधर पैर मार रही है। कोरोना टेस्ट की संख्या में बढ़ोतरी के साथ साथ बढ़ते नए मामलों के इजाफे ने देश को उसके शीर्ष में बैठे प्रतिनिधियों के नियत पर शक करने के लिए मजबूर किया है। जैसा की 23 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को दिये सम्बोधन में कहा था की अगर देश को ये इक्कीस दिन नहीं दिये गए तो ये महामारी देश को 21 वर्षों के लिए पीछे धकेल देना होगा। तो इस हिसाब से अपनी हालत को देखते हुए हमें क्या मान लेना चाहिए की देश 21 वर्षों के लिए पीछे चला गया है? आज हमारे देश में एक मिलियन यानि 10 लाख से भी ज्यादा मामले हो गए हैं ऐसे में हमें खुद से और अपने शुभचिंतक प्रतिनिधियों से ये नहीं पूछना चाहिए की क्या ये संख्या कभी स्थिर होगी या नहीं? क्या इस विभीषिका को रोकने में हम कभी सक्षम हो पाएंगे? कहाँ गलती हुई जो इस हालत में पहुँच गए?
भारत में 29 जनवरी को केरल में कोरोना का पहला केस आया था। लेकिन ये चिंता की बात इसलिए नही थी क्योंकि जिसमें ये लक्षण पाया गया था वो छात्र चीन से लौटा था, और भारत में तब तक संक्रमण नहीं फैला था यानि इसे रोक सकने की गुंजाइश थी। इसके बाद पूरे फरवरी महीने में कोई कोरोना मरीज नहीं मिला। तब तक भारत को हम कोरोना से सुरक्षित मानकर चल रहे थे। फिर आया मार्च का महिना और चीन सहित दुनिया के कई देश कोरोना की चपेट में आ गए थे। फ़्रांस, इटली और स्पेन जैसे देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने लगी थी। भारत में भी गिनती बढ्ने लगी 2 मार्च से 15 मार्च तक कोरोना के 100 मामले हो गए थे। जब पहली बार देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था तब देश में कोरोना के 500 मामले से भी कम थे और जब ये पहला लॉकडाउन खत्म हुआ तो ये मामले 10 हज़ार से ज्यादा हो गए थे और ये इल्ज़ाम भी लगाए जा रहे थे की भारत में जांच कम हो रहे हैं। इन बढ़ते मामलों को देखते हुए हमने दुबारा लॉकडाउन लगाया लेकिन इस बार आकड़ा 1 लाख तक पहुँच गए। इस बीच हमने कई परेशानियों को झेला जैसे प्रवासी मजदूरों की समस्या उनके रहने खाने और अपने घर लौटने की समस्या। और औद्योगिक समस्याओं के कारण देश की आर्थिक हालत खराब चुकी थी। मई तक हमारी सरकार समझ चुकी थी की लॉकडाउन से कोरोना पर काबू नहीं पाया जा सकता है। और फिर शुरू कि गयी अनलॉक की प्रक्रिया। अब कोरोना के मामले और तेज़ी से बढ़ें लगे। 26 जून तक देश में 5 लाख कोरोना के मामले हो गए थे। फिर अगले तीन ही हफ्तों में ये संख्या बढ़कर दोगनी हो गयी यानि 10 लाख से ज्यादा कोरोना केस। पाँच लाख होने में तीन महीने लगे पर इसे दुगना होने में सिर्फ तीन हफ्ते, इससे हम स्थिति का अंदाज़ा लगा सकते हैं ये संख्या शायद करोड़ों तक चली जाए क्योंकि न हम इस पर रोक लगा पा रहे हैं और न ही इसका इलाज़ ढूंढ पा रहे हैं। ये मामले तब है जब हम टेस्टिंग के नियम बदले जा चुके हैं अब सिर्फ लक्षण दिखने वालों की टेस्टिंग कर रहे हैं अगर शुरुआती नियमों से कर रहे होते तो शायद ये आकड़े और भयावह होते।
सरकारी अनदेखी के साथ साथ कुछ गलतियाँ हमारी भी हैं जब देशभर में लॉकडाउन है साफ तौर निर्देश दिये जा चुके हैं की घर से बाहर नहीं जाना है सही तरीके से मास्क लगाना है। इसके बावजूद भी हम अपनी हरकतों से बाज़ नही आ रहे खुले आम अपने सगे-संबंधियों से मिलजुल रहे हैं। देश की जनता तो अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ ही रही है, साथ ही देश के कुशल नेतृत्व को दाग लगाते हुए कुछ नेता भी पीछे नहीं हैं। खुलेआम शादी समारोह आदि का आयोजन कर रहे हैं और देश की जनता को अपने प्रवृति के हिसाब से संदेश दे रहे हैं। इनके लिए एक शेर याद आ रहा है:
घर रहिए की बाहर है एक रक्स बलाओं का
इस मौसम-ए-वहशत में नादान निकलते हैं
राज्यवार देखें तो महाराष्ट्र का पहला नंबर है कोरोना के लगभग 2 लाख 85 हज़ार मामले आ चूके हैं। दूसरा नंबर तमिलनाडू का है जहां कोरोना मरीजों की संख्या 1 लाख छप्पन हज़ार से ऊपर है। शहरों की बात करें तो मुंबई और दिल्ली सबसे ज्यादा जूझ रहें हैं। लेकिन चिंता वाली बात बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में है जहां की स्वास्थ्य व्यवस्था वैसे ही बद्दत्तर हालत में हैं ऊपर से कोरोना का कहर बरस रहा है। इन राज्यों में तुलनात्मक रूप से टेस्टिंग कम हो रही है और मामले ज्यादा आ रहे हैं जो की एक चिंता का विषय है। सबसे तेज़ संक्रमण फैल रहा है बिहार में, यहाँ पर अभी तक साढ़े 3 लाख से भी टेस्ट हुए, एक लाख लोगों पर सिर्फ 316 टेस्ट, जब की पूरे देश का औसत एक लाख पर 979 टेस्ट का है। आबादी के हिसाब से बिहार में टेस्टिंग रेट सबसे कम है। और जीतने हो भी रहे हैं उनमें पॉज़िटिव आने वालों का आंकड़ा सबसे ज्यादा है। जहां रही बात कर्नाटक की तो वहाँ के स्वास्थ्य मंत्री कह ही चूकें हैं कि “अब कोरोना से हमें सिर्फ भगवान ही बचा सकते हैं सरकार के हाथ में कुछ नहीं।” दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में कोरोना के ज्यादा मामले आए तो संभाल लिए गए क्योंकि आकर्षण का केंद्र है सबकी नज़रें रहती है लेकिन बिहार जैसे राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत हम सब जानते हैं। इस पर हमें सोचना चाहिए।
हम दुनिया और भारत दोनों की ही हालत देख रहे हैं। तो सवाल ये उठता है की क्या दुनिया के बाकी देश भी ऐसे ही हालात से गुज़र रहे हैं। शुरुआत में अमरीका फ़्रांस और स्पेन से आई तस्वीरों को देख भगवान से दुआ करते थे की हमपर कृपा बनाए रखना। अब वो तस्वीरें भी आना बंद हो गयी हैं इसका मतलब ये नहीं है की वहाँ के हालात ठीक है। दुनिया भर में कोरोना के मरीजों की संख्या 1 करोड़ 52 लाख से ज्यादा हो चूकें हैं और उसका तेरहवाँ हिस्सा मतलब लगभग 10 लाख मरीज़ केवल भारत में हैं। संक्रमण के मामले में भारत का अभी तीसरा नंबर है सबसे ऊपर अमरीका फिर ब्राज़ील उसके बाद भारत। अमरीका में मरीजों की संख्या 39 लाख 38 हज़ार है, और मौत का आंकड़ा 1 लाख 42 हज़ार से ऊपर जा चुका है। दूसरा नंबर ब्राज़ील का है और फिर भारत पर इन सब के बीच भारत के लिए एक सकारात्मक बात ये है कि जब अमरीका में अप्रैल महीने के आखिर में जब मरीजों की संख्या 10 लाख थी तब मरने वालों की संख्या 57,700 था। ब्राज़ील में 21 जून को 10 लाख मामले हुए तब मरने वालों की संख्या 50 हज़ार थे। भारत में 10 लाख पर मरने वालों की संख्या 25 हजार है। इसके कारण में विशेषज्ञों का कहना है कि “इसके पीछे बहुत से कारण हैं जैसे हमारा इम्यूनिटि का अच्छा होना, बचपन में लगाए जाने वाले टीके और कुछ हमारी प्राकृतिक संरचना के कारण।” भारत में 10 लाख में एक्टिव मामले 3 लाख 10 हज़ार है, ज्यादा मामले ठीक हो चुके हैं लेकिन एक्टिव मरीजों की संख्या धीरे-धीरे ही सही ऊपर जा रही है। और ये तब कि बात है जब हम सरकारी आंकड़ों की बात कर रहें हैं। सरकार की नियत पर संदेह नहीं है पर जैसा की हम सब जानते हैं सरकारी आंकड़ों के बारे में तो चिंता स्वाभाविक हो उठती है। आशा करते हैं की ये आंकड़े बहुत दुरुस्त होंगे।
लेकिन हम आशा की किरण लिए ही बैठ सकते हैं और अपने-अपने भगवान से दुआ कर सकते हैं की ये सब जल्दी खत्म हो। कोरोना ने जिस तरह से हमारी में उथल पुथल मचाया है सदियों तक हम इस विभीषिका को भूल नहीं पाएंगे। हमारे बच्चों के लिए ये एक कहानी कि तरह होगी जिसे हम सदी का काला पन्ना कहकर बच्चों को सुना रहे होंगे। इस वक़्त हमें बस सतर्क रहना है और दूसरा को और से संक्रमित होने से बचाना है। अहतियातन एक शेर अर्ज़ किए देता हूँ जो शायद बशीर बद्र साहब ऐसे ही किसी वक़्त के लिए लिखा होगा।
कोई हाथ भी न मिलेएगा जो गले, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज़ का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो।
Digvijay kumar,
Graduation in Hindi Literature
Post graduation in Hindi Literature
NET Qualified
Pursuing PHD
Working as a Translator.