लेखक – सौरभ गर्ग
SMOG! जी हां स्मॉग, नाम तो सुना होगा ? अगर इन दिनों आप दिल्ली में हैं तो यह आपकी सांस का दूसरा नाम है। आपकी सांस में ऑक्सीजन नहीं है बल्कि धूल, कोहरा, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण है जो सूर्य की रोशनी के सम्पर्क में आते ही वातावरण में एक जहरीली परत बना लेता है जिसे हम SMOG कहते हैं । स्मॉग के साथ दो नाम और सुनने में आते हैं मोटू-पतलू की तरह जो PH2.5 और P.H10 हैं ।
आखिर क्या हैं ये P.H 2.5 और PH 10 ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने Particulate matter के प्रमुख घटक वर्गीकृत करते हुये कहा है “sulphate, nitrates, ammonia, sodium chloride, black carbon, mineral dust और water” और जिसमें 2.5 एवं 10 कणों का प्रति Micron (मीटर का 10 लाखवॉ भाग) व्यास (Diameter) है। जो तय मानकों से 7 से 8 गुना ज्यादा दिल्ली की हवा में घुले हुये हैं।
यह सब हमारी अपनी ही उपज है जो हमने कोयला और पराली (धान के अवशेष) जला कर, वाहनों और कारखानों के जहरीले धुंए और रासयनिक गैस से बनाया है। आज एक अखबार ने कार्टून छापा है जो यह इशारा करता है कि प्रदूषण के बिना विकास नहीं और विकास से प्रदूषण है। शायद यह SMOG इसीलिए हमारी साँस में आ गया है कि विकास इसके बिना संभव नहीं है चाहे वह शारीरिक और मानसिक विकास ही क्यों न हों। प्रकृति हम पर तंज कर रही है। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) के लिये कहा था “To every action there is equal and opposite reaction” दिल्ली ने इसे प्रदूषण के मामले में लागू कर के दिखाया है।
दिल्ली ने प्रकृति से हट कर स्वयं अपना एक मौसम खोज लिया है, धुंध का मौसम, अपने ही पहाड़ रच लिये हैं कूड़े के और अपनी नदी बना ली है रासायनिक मिश्रण की। हवा तो हम सब जानते ही हैं और इस सबके साथ इस शहर के नागरिक कुछ समय बाद केवल मुर्दे होंगे। मैं जब दिल्ली में आया था तो मुझे गर्व था कि मैं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी का बाशिंदा होने जा रहा हूँ लेकिन अब दुःखी हूँ कि विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी का बाशिंदा हूँ.. और हैरत है कि जिंन्दा हूँ। कभी इसी शहर में प्रसिद्ध शायर गालिब ने कहा था –
“कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नजर नहीं आती”
जब ये शेर कहा गया होगा तब क्या दृश्य था पता नहीं लेकिन आज के मंजर पर यह शेर सटीक वार करता है क्योंकि सरकार की तरफ़ से कोई समाधान होगा इसकी उम्मीद नहीं और यमुना एक्सप्रेस वे पर 18 वाहनों की लगातार टक्कर यह इशारा करती है कि कोई सूरत नजर नहीं आ रही। देश के हर नेता को इस समय गुजरात की सूरत दिख रही है क्योंकि चुनाव आने वाले हैं लेकिन दिल्ली की शक्ल कोई नहीं देख रहा जो धुंध लपेट मदद की गुहार लगाते खड़ी है।
आंकड़े बताते हैं कि हमारे फ़ेफ़डे प्रतिदिन 50 सिगरेट जितना जहरीला धुआं सेवन कर रहे हैं। प्रदूषण से प्रतिवर्ष हजारों लोग अपनी ज़िन्दगी से हाथ धो रहे हैं। टी वी पर एंकर जोर जोर से बता रहा था कि दिल्ली के प्रदूषण पर सरकार ने लिया बड़ा फ़ैसला, स्कूलों में की गई छुट्टी, मेरी हंसी छूट गयी इतना बड़ा फ़ैसला सुनकर, शायद ये इस सदी का सबसे बड़ा फ़ैसला हो। हमें पता है कि स्कूल बंद करने से समस्या का समाधान नहीं होगा, और न ही मास्क लगाने से क्योंकि हम मुहँ ढक कर चेहरा तो छिपा सकते हैं लेकिन अपने किये के प्रकोप से बच नहीं सकते। समाधान क्या है हमें यह भी पता है, जरूरत है तो बस इच्छा शक्ति की। लेकिन उस इच्छा शक्ति का आभाव दिखता है। 1952 में दिसम्बर के पहले हफ़्ते में लंदन में 4000 लोग ऐसे ही स्मॉग की वजह से मरे थे। शायद सरकार भी कुछ ऐसा ही घटने की प्रतीक्षा कर रही है। इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सरकार और अन्य दूसरों की जवाबदेही तय करने से पहले हम अपने कर्तव्य सुनिश्चित करें।
(लेखक डॉ भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में सामाजिक कार्य (Social Work) विषय में ग्रेजुएशन के छात्र हैं)