Breaking News

कोरोना का तथ्यपरक विश्लेषण

Article
🖋विनय सहरावत

भारत में प्रतिदिन 3 से 4 लाख के बीच covid cases आ रहे हैं, ठीक भी उसी संख्या मे हो रहे हैं. मौतों का आकंडा भी रोज बढ़ ही रहा है, सरकारी आंकड़ों पर विश्वास कम है, वास्तविक मौतें कहीं ज्यादा हो रही हैं. इस बात का प्रमाण श्मशान घाट और कब्रिस्तान के निजी आंकड़ों से ले सकते हैं. इस विषय पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल पर हरियाणा के मुख्यमंत्री जबाव देते हैं- ” सही आंकड़े बताने से कौनसा मरे हुए लोग जिंदा हो जाएंगे”.
आज समय आह्वान कर रहा है कि इस लड़ाई मे सभी को साथ आना होगा तभी हम विजय प्राप्त कर सकते हैं. अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव मे हम एक दूसरे का साथ इस लड़ाई मे दे रहे हैं या नहीं?
सच मे कुछ लोगों ने आपदा को अवसर मे बदल दिया है, आज व्यापारी वस्तुओ की मांग बढ़ने पर उनके दाम भी बढ़ा रहे हैं, ये वही व्यापारी है जिनके पिछली साल lockdown मे व्यवसाय, उद्योग, कारखाने बंद हो गए थे. तब देश के कई स्वयंसेवी संगठनों ने सामने आकर बड़ी संख्या मे इन व्यापरियों को सामानों के ऑर्डर दिए थे जैसे आटा मिल से आटा, तेल, साबुन, टूथपेस्ट, नमक, प्रवासियों के लिए चप्पल आदि और उस सामान को समाज के गरीब तबकों मे जाकर मुफ्त मे बांटा था. व्यापारी भी खुश हुए और गरीब समाज भी. यही गरीब समाज जिस जनता की मदद से पिछले वर्ष अपने आप को भुखमरी से बचा पाया था आज उसी जनता को महंगे फल, सब्जी बेच कर लूट रहा है. एक अच्छा तोफा इस समाज ने दूसरे समाज को दिया है. आज जनता सोच रही है कि क्या इसी दिन को देखने के लिए हमने पिछले साल इन लोगों को घर घर जाकर राशन और बाकी जरूरत का सामान पहुंचाया था.
हम अपना प्रतिनिधि चुनकर एक सरकार का निर्माण देश को चलाने के लिए करते हैं. आज हम देश मे चारो तरफ हो रही अव्यवस्था को देख अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी सरकार ने हमारे लिए कितनी तयारी की थी. परीक्षा से एक दिन पहले युद्धस्तर पर वे विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं जो पूरे साल पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते हैं, जो विद्यार्थी रोज पढ़ाई करते हुए आते हैं वे अचानक परीक्षा को देखकर हडबडाते नहीं हैं जैसे आज हमारा सिस्टम हडबडाया हुआ है. पहले से तयारी ना होने की वज़ह से आनन-फानन मे oxygen generater और जरूरी दवाइयों का आयात हो रहा है, भूटान जैसा देश हमे liquid oxygen भेज रहा है यह हमारे लिए शर्म की बात है. हमारी मीडिया चाहे कुछ भी दिखाए लेकिन एक नजर पूरे विश्व के प्रमुख अखबारो पर डालें तो सब देश के प्रधानमंत्री को इस वायरस का super spreader कह रहे हैं, जिससे भारत की छवि पूरी दुनिया मे खराब हुई है. क्योंकि यही व्यक्ती कुछ दिन पहले तक पूरी दुनिया की नजरो मे हीरो था जिसने भारत को कोरोना के विकराल रूप से बचाया था. जो समय एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं का जायजा लेने के लिए लगाना चाहिए उस समय को वह दूसरे प्रदेश मे जाकर रैली करने मे लगा रहे हैं. लेकिन अब इसकी सारी जिम्मेदारी भी चतुराई दिखा कर जनता के ऊपर डाली जा रही है कि जनता ने ही लापरवाही की इसलिए हालात ऐसे हो गए हैं. बड़ी बड़ी रैलियों का आयोजन कर चुनावी राज्य सरकारे और वहा की विपक्षी पार्टियां जनता को बुलाती रहीं और अब उन्हीं की IT सेल ऐसे मैसेज चला रही हैं कि ‘रैली पार्टियों ने की मगर उनमे गए तो हम(जनता) ही थे’ इसलिए गिल्टी जनता को ही कराया जा रहा है.
दूसरी तरफ राजधानी को देखें तो वहा के मुख्यमंत्री पूरी दुनिया को चीख चीख कर बताते थे कि हमने इतने मुहल्ले क्लिनिक बनाए, इतने अस्पताल बनाए लेकिन आज हालात मुख्यमंत्री जी से ज्यादा सच्चाई बयां कर रहे हैं. दिल्ली के अस्पताल दिल्ली की जनता के लिए हैं और दिल्ली भी केवल दिल्ली के लोगों की ही है ऐसी मानसिकता रखने वाले मुख्यमंत्री आज किस मुह से दूसरे राज्यों से oxygen की मदद मांग रहे हैं. क्या वो भूल गए कि कैसे उन्होंने दूसरे राज्यों की जनता को DTC की बसों मे भरकर दिल्ली से बाहर UP बॉर्डर पर छोड़ दिया था.
ऐसे समय मे सरकार से ज्यादा भूमिका प्रशासन की है, क्या वह ठीक से सब कर पा रहा है? यहा दो बाते हैं, या तो वह कर नहीं पा रहा है या फिर करना नहीं चाहता है. दवाईयों की कालाबाजारी, फल सब्जियों के मुह मांगे दाम, सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा के लिए प्रशासन मे बैठे लोग सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं. वे चाहें तो यह सब रोक सकते हैं लेकिन पता नहीं अभी वे किस दूसरे जरूरी काम मे व्यस्त हैं.
हमारी पुलिस ने पिछले डेड साल मे सराहनीय कार्य किया है, लेकिन अब धीरे धीरे उनकी अच्छी छवि भी धूमिल होती जा रही है. देश भर से आ रहे कुछ उदहारण यहा प्रस्तुत कर रहा हूं, एक व्यक्ति अपनी बुढ़ी माँ का कोरोना टेस्ट कराने के लिए ले जा रहा था, पुलिस वाले उसे रोकते हैं और उसकी उनसे मुहभाषा हो जाती है उसके बाद 5-6 पुलिस वाले उसे गाड़ी मे ठूँस कर थाने ले जाते हैं उसकी बूढ़ी माँ उन पुलिस वालो के हाथ जोड़ रही है कि उसे छोड़ दें और वह व्यक्ति चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि उसे उसकी मम्मी का टेस्ट कराने ले जाना है उसे छोड़ दो लेकिन पुलिस एक नहीं सुनती है. दूसरा उदहारण कुछ ऐसा है कि पुलिस एक व्यक्ति के घर मे घुसकर उसके यहा रखा oxygen cylinder उठा ले जाती है, वह oxygen cylinder उसने अपनी माँ के लिए रखा होता है जो बीमार चल रही है, वह पुलिस के आगे हाथ जोड़कर माथा टेक कर भीख मांगता है कि cylinder को मत ले जाओ उसकी माँ मर जाएगी लेकिन पुलिस संवेदनशीलता नहीं दिखाती है और बाद मे पुलिस पर आरोप लगता है कि वह एक वीआईपी के लिए cylinder की व्यवस्था करने के लिए ऐसा कर रही थी. एक अन्य उदहारण मे कुछ पुलिस वाले मिलकर एक व्यक्ती को पीटते है जिसकी कानून उन्हें अनुमति नहीं देता है. बाद मे वे सभी suspend भी होते हैं. ये सभी कार्य पुलिस की कार्यशैली पर उंगली उठाते हैं जो अब जनता की मदद कम परेशान ज्यादा कर रही है और इन हरकतों से उसके द्वारा किए जा रहे सभी अच्छे कार्य भी अनदेखे हो जाते हैं.
पिछली साल सरकार ने बढ़ते कोरोना को देखकर दिल्ली के शाहीन बाग के आंदोलन को उखाड़ फेंका था लेकिन सरकार ऐसा रवैया इस बार चल रहे किसान आंदोलन को लेकर नहीं दिखा रही है. खुद किसान भी आंदोलन खतम नहीं करना चाहते क्योंकि अब उनके हित उनके लिए देश हित से भी उपर हो गए हैं
भारत को विश्व की फार्मा कहा जाता है. विश्व मे बनने वाली दवाइयों का 40 प्रतिशत तक हिस्सा अकेले भारत मे बनता है. Serum institute दुनिया मे सबसे ज्यादा वैक्सीन बनाता है. इतनी उपलब्धियों के बाद भी आज भारत मे वैक्सीन प्रयाप्त मात्रा मे नही है, remdesivar injection नहीं है. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? जो व्यक्ति वैक्सीन के उत्पादन और उसकी आपूर्ति मे बड़ा योगदान दे रहा है वह अपने परिवार के साथ लंदन भाग चुका है और पूरी दुनिया मे भारत की बेज्जती हो चुकी है, क्यों? क्योंकि हमारे देश के कुछ शक्तिशाली लोगों ने उसके उपर वैक्सीन को लेकर गलत तरीके से दबाव बनाया और सरकार ने उसे केवल Y श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करायी थी, आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ अभिनेत्री कंगना रनौत को कुछ दिन पहले Y plus श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करायी गयी थी. उदार पूनावाला या कंगना रनौत मे से कौन देश के लिए ज्यादा जरूरी है यह सरकार ने अलग अलग स्तर की सुरक्षा देकर दिखा दिया है.
हमे आज स्वास्थ्य सुविधाओं की अधिक जरूरत है, और जो आज हमारी युवा जनसंख्या है यह अगले 25-30 वर्ष बाद विश्व की सबसे अधिक वृद्ध जनसंख्या होगी, ऐसे मे हम आज के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के दम पर इस जनसंख्या को स्वास्थ सुविधाएं नहीं दे पाएंगे इसलिए आवश्यकता है अधिक से अधिक सरकारी अस्पतालों के निर्माण की, जब हम देश मे प्रतिदिन 35+ किलोमिटर की गति से सड़कों का निर्माण कर सकते हैं तो हम तेजी से अपना हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर भी सुधार सकते हैं. इसके लिए सरकार और प्रशासन को तेजी से इस तरफ ध्यान देना होगा. क्योंकि कोरोना आखिरी मुसीबत बिल्कुल भी नहीं है. हमारी पुलिस को भी अपनी छवि फिर से सुधारनी होगी और संवेदनशील पुलिस बनने की ओर अग्रसर होना होगा. देश के मुख्य नेताओ को जनता के सामने आदर्श बनकर ही उनसे किसी बात का आग्रह करने का अधिकार मिल सकता है और ऐसे समय मे सभी को एक साथ आकर सोचना चाहिए कि जनता को इस मुसीबत से कैसे बाहर लाया जा सकता है.
सबसे जरूरी बात जनता को भी अपने अंदर सुधार करने की जरूरत है, क्योंकि व्यापारी, फल सब्जी विक्रेता, दवाओं की कालाबाजारी करने वाले लोग, मास्क ना पहनकर वायरस फैलाने मे मदद करने वाले लोग सभी जनता का ही हिस्सा है. सभी को एक बार फिरसे सोचना चाहिए कि क्या वो जो कर रहे हैं वो देश हित मे है या नहीं, अगर नहीं है तो तुरंत इसे करना बंद करें. क्योंकि समाज का समृद्ध तबका आपकी मदद तब ही करेगा जब आप भी उसे सहयोग देंगे. जो संगठन आज समाज के बीच जाकर लोगों की मदद कर रहे हैं वे सबसे ज्यादा प्रशंसा के पात्र हैं, वे निःस्वार्थ भाव से यह सब कर रहे हैं, जनता को आज सरकार प्रशासन से ज्यादा इन्हीं संगठनों पर भरोसा है.
इस लेख को पढ़ते समय कोई भी मेरा मानसिक गुलाम ना बने, अपने विवेक का इस्तेमाल करें और कैसे स्थिति को सुधारा जा सकता है उसके बारे मे सोचे और अपने विचार रखें. तभी आप सही मायनों मे एक स्वतंत्र विचार रखने वाले व्यक्तित्व बन सकते हैं. लेख का शीर्षक आप स्वम रख सकते हैं, त्रुटि के लिए क्षमादान दें 🙏

विनय सहरावत

Campus Chronicle

YUVA’s debut magazine Campus Chronicle is a first of its kind, and holds the uniqueness of being an entirely student-run monthly magazine.

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.