‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन रचनाओं हेतु प्रेरित करेंगे. प्रस्तुत है –
मैं एक गरीब का बच्चा हूँ
आपके आस-पास ही भटकता रहता हूँ,
हर रोज आपको कहीं जाते देख
मन ही मन मुस्कुरा लेता हूँ,
अपने अंदर ही कुछ ख्वाब बुन लेता हूँ,
हाँ मुझे भी आपके जैसा कुछ बनना है,
हाँ मुझे भी स्कूल जाना है।
जब भी उम्मीद भरी नजरों से
आपको देखा करता हूँ,
हर बार आगे बढ़ो कहकर
उन उम्मीदों को ओझल कर देते हो,
अपने लेखों या अख़बारों में
मेरी चिंता तो आप करते हो,
लेकिन जब भी मुझसे कहीं मिलते हो
तो फिर क्यों नजरें चुरा लेते हो।
सरकार के नारों में तो
कभी उनके झूठे वादों में,
अपने ख्वाब को हकीकत समझ लेता हूँ,
लेकिन ये भ्रम भी मेरा टूट जाता है
जब यूँही उनका पाँच साल गुजर जाता है।
हाँ अपने ख़्वाब को मुझे हकीकत बनाना है,
अपनी एक बात आप सब तक पहुंचाना है,
हाँ मुझे भी स्कूल जाना है।
सड़क का किनारा हो या मंदिर की सीढ़ियां,
रेल के डिब्बे हो या फिर ट्रैफ़िक की वो लाल बत्ती,
हर जगह मैं आपको
किसी साये की तरह दिख जाता हूँ,
माफ़ करना अगर मैं आपको परेशान करता हूँ,
आपके ख़जाने से दो-चार सिक्के मांग लेता हूँ,
पर मैं अपनी किस्मत का मारा हूँ
हाँ मैं भी थोड़ा मजबूर हूँ।
क्या ज़िन्दगी यूहीं गुज़र जायेगी
क्या मेरे ख्वाब अधूरे रह जाएंगे,
मेरे स्कूल जाने का सपना क्या बस सपना बनकर रह जायेगा।
पर जो भी हो अभी मैंने उम्मीद नही हारी है,
अपनी इस स्लेट को आपके उस कॉपी में बदलना है,
अपनी इस आवाज़ को थोड़ा और ऊपर उठाना है,
इस नाले से मुझे बाहर निकलना है
हाँ मुझे भी एक सरकारी बाबू बनना है,
हाँ मुझे भी स्कूल जाना है….