‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन रचनाओं हेतु प्रेरित करेंगे. प्रस्तुत है –
कल तक जो भाई थे, आज उन्हें भी पराया कर दिया,
देख समय देख तूने सबकुछ कैसे बदल दिया।
खिलौनों को भी किचन सेट से बदलकर महज़ ज़रूरत का सामान बना दिया,
देख समय देख तूने सबकुछ कैसे बदल दिया।
कभी जो खुद का खाना भी नहीं खा पाती थी,
आज उसे भी परिवार को साथ खिलाना सिखा दिया,
देख समय देख तूने सबकुछ कैसे बदल दिया।
कल तक जो घर की छोटी बेफिकर लाडो थी,
तूने उसे भी बड़ा ज़िम्मेदार बना दिया,
देख समय देख तूने सबकुछ कैसे बदल दिया।
जो कभी एक गुड़िया टूटने पर भी आसमां सर पे उठा लिया करती थी,
आज दिल टूटने पर भी उसे खामोेश बैठा दिया,
देख समय देख तूने सबकुछ कैसे बदल दिया।
नादानियां थीं तो बचपन था, तूने तो बचपन ही सवार दिया,
देख समय देख तूने सबकुछ कैसे बदल दिया।
जो कभी घर से 10 कदम की दूरी पर भी पापा का साया ढूँढा करती थी,
तूने उसे बिन परछाई कोसों दूर कर दिया,
ऐ समय इस बार तूने सबकुछ कुछ ज़्यादा ही बदल दिया।
बहुत ही मनमोहक व शानदार कविता। 💐🙏👏
…समय की महत्त्वता और समय का सदुपयोग करने का अच्छा सन्देश प्राप्त हुआ इस कविता से।
#Well_done_Shreya 👍