‘बंदिनी’ फिल्म का एक गाना है – ‘मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे’। मन्ना डे ने अपना दिल चीर कर गाया हैं इस गाने को। इस गाने में दिखाते हैं कि एक कैदी को फांसी के लिए ले जाया जा रहा है, हाथ- पैर में बेड़ियाँ हैं परन्तु चेहरे पर एक अलग सी चमक और खिली हुई मुस्कान। वो क्रांतिकारी कैदी ही ये गाना गाते हुए अपने आखरी सफर पे निकला है। उसकी माँ और छोटी बहिन, जेल के दरवाज़े पर खड़े उसकी आवाज़ सुन रहे हैं। वो अपनी माँ से कहता हैं कि ‘फिर जन्मूँगा उस दिन जब आज़ाद बहेगी गंगा, ओ मैया’, फिर अचानक से ही उसका गाना बंद हो जाता है, एकदम अचानक से, बीच पैराग्राफ में। चारों तरफ एक पल के लिए शान्ति छा जाती है। उस शान्ति को चीरती हैं एक अबला माँ की चीख जिसे ये समझ आ गया कि उसका ‘लाल’, सवतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पे न्योछावर हो गया है। वो माँ चीख कर वहीँ जेल के फाटक पे मूर्छित हो जाती हैं।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की माताओं के अश्रु भी वहीँ लाहौर जेल की फाटक पे सूख गए होंगे। उनके जैसे न जाने और कितने माता -पिता होंगे जिन्होंने कलेजे पर पत्थर रखकर अपनी क्रांतिकारी संतान को अंतिम विदाई दी होगी। उन सब का दुःख हम कभी नहीं समझ पाएंगे शायद, समझ लेते तो इस देश को जात-धर्म- भाषा इत्यादि के नाम पर बांटने के बजाय, एकजुट करके वापस वही सोने की चिड़िया का रूप दे चुके होते। वैसे उम्मीद अभी भी टूटी नहीं। शहीद दिवस पर सभी शहीदों को कोटि-कोटि नमन।
सौरव आनंद