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राहुल सांकृत्यायन : महापंडित मुसाफ़िर

9 अप्रैल,1893 को आजमगढ़ के पन्दहा नामक छोटे से गांव में जन्मे राहुल सांस्कृत्यायन को हिंदी यात्रा वृत्तांत के पितामह के रूप में याद किया जाता है | अपने मूल नाम केदारनाथ पांडेय को त्याग कर इन्होने अपनी गोत्र सांस्कृत्य द्वारा पहचाना जाना ज़ादा उचित समझा |

4 भाइयों और एक बहिन में जयेष्ठ हिंदी यात्रा साहित्य के इस जनक ने अपना बाल्यकाल ननिहाल में ही बिताया | नाना कर्नल रामशरण पाठक के साथ की गयी शिकार यात्रा एवं दिल्ली, शिमला ,नागपुर, हैदराबाद,अमरावती,नाशिक आदि नगरों के दर्शन ने बालक केदार की यात्रा और घुमक्कड़ी में रूचि जाग्रत की जिसने आगे चलकर उनके जीवन को अर्थ प्रदान किया | यायावरी में रचे बसे, हिंदी और संस्कृत के यह प्रकांड पंडित घुमक्कड़ी को ही अपना धर्म मानते थे | बौद्ध धर्म और ससंस्कृति पर इनका गहन अध्ययन आज भी हिंदी साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किये हुए है |

किशोरावस्था में ही संपन्न हुए विवाह ने राहुल के मन मष्तिष्क में विद्रोह की भावना और तीव्र कर दी, जिसके परिणामस्वरूप वह घर गृहस्थी त्यागकर एक मठ में साधु का जीवन व्यतीत करने लगे | संस्कृत में महारथ प्राप्त कर चुके इस ‘महापंडित’ ने सन १९३७ में रूस के लेनिनग्रेड में संस्कृत अध्यापक का पदभार भी संभाला जिस दौरान उन्होंने एलीना नामक एक महिला से दूसरा विवाह भी रचाया |

यात्रा साहित्य के अपितु भी राहुल ने धर्म, दर्शन, इतिहास, राजनीती, प्राचीन धर्मों की व्याख्या आदि के क्षेत्र में भी विशेष योगदान दिया | सत्य और अपनी वैचारिक स्पष्टता के कारण इन्हे आलोचकों और निंदा का सामना भी करना पड़ा | अयोध्या में बलि प्रथा के विरुद्ध दिए गए व्याख्यान के कारण उन्हें पुरोहितों की हिंसा और कोप का शिकार भी होना पड़ा |

विभिन्न देशों के व्यापक भ्रमण के फलस्वरूप वह बहुभाषी बने और हिंदी, पाली, संस्कृत, भोजपुरी, पर्शियन, उर्दू, अरबी, कन्नड़, तमिल, फ्रेंच, और रशियन भाषण में भी कई लेख एवं रचनायें लिखीं |

उनकी कुछ मुख्य कृतियां इस प्रकार है :
यात्रा साहित्य :- मेरी लद्दाख यात्रा, चीन में क्या देखा, किन्नर देश की ओर, मेरी तिब्बत यात्रा, आदि |
आत्मकथा :- मेरी जीवन यात्रा |
कहानी संग्रह :- वोल्गा से गंगा तक, सतमी के बच्चे, बहुरंगी मधुपुरी, आदि |

हिंदी यात्रा साहित्य में दिए गए अपने असाधारण योगदान के कारणवश इन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मा विभूषण, त्रिपिटिकचार्या आदि बहुप्रतिष्ठित सम्मान द्वारा सुशोभित किया गया | 14 अप्रैल, 1963 को रमणीक वादियों में लगभग अस्सी वर्ष आपने अपनी देह का त्याग कर दिया और घुम्मकड़ी इस धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए, कैलाशलोक की ओर प्रस्थान किया |

 

Mayank Gautam

Graduate in Politicial Science from University of Delhi and pursuing Bachelors in Law from Faculty of Law, University of Delhi. Always open to rock music and deep talks.

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