— Written By Natbar Rai
सरल शब्दों में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं. भारतवर्ष में यह पर्व श्रद्धा पूर्वक मानते हैं. ‘गु’ का अर्थ – अंधकार या अज्ञान तथा ‘रु’ का अर्थ – प्रकाश या ज्ञान है. गुरु हम सब को प्रकाशित करते हैं. गुरु परम्परा भारत में अनंत काल से चली आ रही है. गुरु से प्राप्त ज्ञान मनुष्य का कायापलट कर सकती है. वेदों के ज्ञाता ऋषि व्यास जी को प्रथम गुरु माना जाता है. इस लिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है.
स्वामी विवेकानन्द जी बचपन से परमात्मा की खोज में लगे हुए थे. परन्तु, गुरु परमहंस से दिक्षा मिली तो गुरु के कृपा से आत्म साक्षात्कार हो पाया. कबीर दास के गुरु जनों के लिए समर्पण पर कुछ प्रकाश डालता हूँ, जो उनके दोहो में ये देखने को मिलता है.
“गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥”
अर्थात, कबीर जी कहते हैं कि गुरु में और पारस में अन्तर सन्त जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना बनाती है, परंतु गुरु शिष्य को तो अपने समान महान बना देते हैं.
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
अर्थात, कबीर जी कहते हैं: गुरु कुम्हार और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार-मारकर और गढ़- गढ़ कर शिष्य के बुराई को दूर किया जाता है.
“सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।
तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मणड॥”
अर्थात, सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रह्मणडो में सद् गुरु के समान हितकारी आप नहीं पायेंगे.
कबीर जी का एक प्रसंग: एक दिन रामानंद जी गंगा स्नान के लिए गए तथा जब बाह सीढ़ी से उतर रहे थे तो उनका पैर कबीर जी के शरीर पर पड़ा तभी रामानंद जी के मुख से राम-राम शब्द निकला तो कबीर ने उस शब्दों को दिक्षा मंत्रमन कर, रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गुरु परंपरा: संघ के स्वयंसेवक ने समाज में समर्पण भाव जागृत के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन , गुरु रूपी भगवा-ध्वज के पूजन की परंपरा विकशित किये. इस दिन ध्वज का पूजा करते हैं. तथा विकसित व्यक्तित्व को समाज व् राष्ट्र सेवा में समर्पित करने का संकल्प लेते हैं. समर्पण भाव से ही समाज में एकता का भाव उत्पन होता है एवं अपने गुरु से प्राप्त शक्ति को राष्ट्र निर्माण में लगा देते हैं.
आरएसएस अपना गुरु भगवा ध्वज को क्यों मानता ?
इस प्रश्न का उतर हमें ‘ संघ कार्य पध्दति का विकास ‘ नामक पुस्तक में मिला जिस के लेखक श्रीमान बापूराव वन्हाड पांडे हैं, इन के अनुशार व्यक्ति में दोष हो सकता है परन्तु पुरातन काल से हमारे तयाग के प्रतिक इस ध्वज में कोई दोष या चारित्रिक विषमता नहीं हो सकती. इस ध्वज का इतिहास पुराण है इस लिए परम पवित्र भगवा-ध्वज हमारा गुरु के रूप में स्वीकृति हुए.
गुरु पूर्णिमा को अपने गुरु के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करने का एक अवसर है. इस दिन ईश्वर के बराबर दर्जा रखने वाले अपने गुरु के महत्व को समझ कर उनका आदर होता है. इस दिन वस्त्र, फल, फूल अर्पित कर आशीर्वाद लेना चाहिए. यह दिन काफी कल्याणकारी होता है. ये दिन गुरु का ही नहीं बल्कि माता-पिता और भाई बहन के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जीवन में कोई भी पाठ पढ़ा सकता है. इस दिन सभी गुरुओं का आदर करना चाहिए.
गुरु पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण: 2019 का आखिरी चंद्र ग्रहण अत्यधिक महत्त्व पूर्ण है. क्योंकि 149 वर्ष के बाद यह गुरु-पूर्णिमा के दिन ग्रहण लग रहा है. पिछली गुरु पूर्णिमा 12 जुलाई 1870 के दिन ऐसा चंद्र-ग्रहण लगा था. इस नक्षत्र में राशियों पर गहरा प्रभाव परता था. ज्योतिषों की मानें तो इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा, शनि, राहु और केतु के साथ धनु राशि में रहा था. इस बार भी ऐसा ही होने वाला है. ज्योतिष के अनुसार, इसबार चंद्र ग्रहण का अलग-अलग राशियों पर अलग- अलग प्रभाव पड़ने वाला है.
16 जुलाई 2019 को ही गुरु-पूर्णिमा है. ये 16 और 17 जुलाई को साल का आखिरी चंद्र ग्रहण है. 149 वर्षो बाद गुरु-पूर्णिमा के अवसर पर चंद्र ग्रहण रहेगा. यह चंद्र ग्रहण भारत के साथ-साथ यूरोप , अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी एवं दक्षिण पूर्व अमेरिका प्रशांत एवं हिंद महासागर से भी नजर आयेगा.
कैसे लगता है चंद्र-ग्रहण? अंतरिक्ष में सभी ग्रह तथा उपग्रह हमेशा गतिमान रहता है. पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा जबकि चंद्रमा, पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं इन परिक्रमा के समय कभी-कभी पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है. इस खगोलीय घटना के समय पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तथा पृथ्वी से चंद्रमा नहीं दिखती. ये घटना चंद्र ग्रहण कहलाती है. विज्ञान ने ग्रहण को एक सत्यापित खगोलीय घटना माना है. वहीं पुराण में भी ग्रहण का बहुत विशेष महत्व है. सूर्य ग्रहण की समान चंद्र ग्रहण भी काफी अहम माना गया है. पुराणों के अनुसार, किसी भी तरह का चंद्र ग्रहण देखना शुभ नहीं माना जाता. ज्योतिषियों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति विशेष पर चंद्रमा का प्रकोप है तो यह प्रकोप एक सौ आठ दिनों तक निरंतर बना रहता है.
शिव जी से जुड़ा तथ्य: जगत गुरु के नाम से विख्यात हैं भगवान शिव जी , इन्हो ने गुरु-पूर्णिमा के महत्त्व को बढ़ाया था शिव जी ने 15000 वर्ष पहले योग-विद्या पर सिद्धि प्राप्त किये थे तब से ये परंपरा चलता आरहा हैं. भगवान शिव जी ने सात लोगो को ज्ञान दिए जो बाद में ब्रह्मऋषि के रूप में जाने गए. इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद ब्रह्माण्ड के सातों दिशा में ज्ञान के प्रचार में चल दिए तथा शैव धर्म, योग, एवं वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया. शिव के शिष्यों में रावण तथा परशुराम का नाम भी लिया जाता है. ये नाथ, शैव, शाक्त आदि संत शिव के इन परंपरा का निर्वहन करया जाता है. आदिगुरु शंकराचार्य तथा गोरखनाथ ने इसे आगे बढ़ाया.
गुरु पूर्णिमा का वैज्ञानिक आधार:
प्रसिद्ध पुस्तक “विस्डम ऑफ़ ईस्ट” में लिखा है जिस के लेखक ‘आर्थर स्टॉक’ हैं. इन होने कहा है “जिस प्रकार शून्य, छंद, व्याकरण आदि के खोज विश्व विख्यात हैं. इसी प्रकार सतगुरु की महिमा को भी एक दिन पूरा विश्व मानेगा” तथा महान गुरु की पूजा के लिए आषाढ़ के पूर्णिमा को ही क्यों चुना? आगे स्टोक लिखते हैं “इस दिन आकाश से अल्ट्रावायलेट रेडिएसन निकलती हैं. इस कारण व्यक्ति का शरीर, मन बुद्धि पर विशेष प्रभाव परता है अतः ये समय साधक के लिए लाभदायक होता है. आत्म-उत्थान तथा कल्याण के लिए ये दिन वैज्ञानिक द्रिष्टि कोण से भी सबसे उत्तम है.”