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कबीरदास : जीवन परिचय (1398- 1518 ईसवीं)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय

मध्यकालीन भारत में सामाजिक चेतना को जगाने वालों में से एक कबीरदास भक्तिकाल के ऐसे कवि रहे हैं जो समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश की । कबीर के जन्म को लेकर कई किवदंतियां हैं । कबीर पंथी का मानना है कि कबीर का जन्म १३९८ में वाराणसी के लहरतारा तालाब के किनारे हुआ था । कुछ का मानना यह भी है कि कबीर जन्म से मुसलमान थे और बाद में स्वामी रामानंद के प्रभाव से हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुई । कबीर ने खुद कहा है –
हम काशी में प्रकट भये हैं , रामानंद चेताये ।
कबीर पढ़े लिखे नहीं थे अपनी बाल्यावस्था के बालको से एकदम भिन्न रहते थे । उन्हें किताबी विद्या प्राप्त नहीं की थी । कबीर कहते हैं कि –
मसि कागद छुवो नहीं , कलम गहि नहि हाथ ।

उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। आप के समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे।

मध्यकालीन भारत के समाज और साहित्य को जिन लोगो ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया कबीर उनमें से एक हैं । कबीर एक समाज सुधारक , विचारक भी हैं । मौजूदा दौर में , कबीर की अहमियत इस बात से लगाई जा सकती है कि वो पढ़े लिखे नहीं है पर २१बी सदी में हिंदी साहित्य की पढाई उनके बिना अधूरी है । कबीर सिर्फ किताबों तक सिमित नहीं है वे लोगों के जीवन में समाये है । कबीर का सारा जीवन सत्य की खोज में, और असत्य की खंडन में बिता है । कबीर मान्यताओं को तोड़ने वाले है । वो धर्म जाति वर्ण और क्षेत्र की दीवारों से ऊपर हैं । कबीर यथार्थवादी है, और सामाजिक कुरीतियों पे चोट करते हैं । कबीर धर्म विरोधी नहीं है, उन्होंने हिन्दू मुस्लिम में कोई भेद नहीं करते थे । उनकी सरल भाषा और शैली लोगो को आकर्षित करती है । मैनी, सबद, सरवी उनकी कृतियां है जो पंजाबी, ब्रज, खड़ी अवधी , पूर्वी जैसी बोलियों का खिचड़ी है मतलब कबीर किसी भाषा और बोली के बंधन से भी नहीं बढे है । कबीर भाषा, धर्म, समाज और समय के दीवारों से परे हैं । कबीर अपने दोहे में कहते हैं –
हमन है इश्क़ मस्ताना , हमन को होशियारी क्या? रहें आजाद या जग से , हमन दुनिया से यारी क्या?

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