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जब ‘छात्रों के मित्र’ मोदी ने ‘नेता’ मोदी को उत्तम अंकों से उत्तीर्ण कराया

16 फरवरी, 2018, दिन शुक्रवार, भारत के इतिहास में एक अद्वितीय घटना घटी जब तालकटोरा सभागार दिल्ली में बैठे हजारों विद्यार्थियों से तथा भारत के विभिन्न भागों में टी.वी. और रेडियो के माध्यम से जुड़े हुए लाखों विद्यार्थियों से उनके प्रधानमंत्री सन्मुख हुए. विषय था- परीक्षा के तनाव पर विजय पाने के तरीके. इस विषय पर अपनी किताब ‘एग्जाम वॉरियर्स’ के बाद यह दूसरी पहल दर्शाती है कि माननीय प्रधानमंत्री जी अपने राष्ट्र के विभिन्न तबकों के लोगों के जीवन में आने वाली कठिनाइयों से भली-भांति परिचित हैं आर उनको दूर करने का यथासंभव प्रयत्न अथक रूप से कर रहे हैं.

अगले ले डेढ़ घंटे में प्रधानमंत्री जी ने परीक्षा तनाव को कम करने से लेकर, समय प्रबंधन और उचित करियर के चयन जैसे विषयों पर राष्ट्र के विभिन्न भागों के विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों पर चर्चा की. जैसा कि उनके साथ प्रायः होता है, उनके ज़्यादातर उत्तर दैनिक जीवन के उदाहरणों पर आधिरत थे और सहज तथा सरल थे जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति उनको आसानी से समझ सके. उन्होंने कार्यक्रम के प्रारंभ में ही घोषित कर दिया था कि वे प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं, अपितु उनके एक दोस्त की तरह उनसे बात कर रहे हैं, और अंत में उन्होंने कहा भी कि शायद प्रत्येक विद्यार्थी ने तो उनके रूप में आज एक नया दोस्त बनाया होगा, पर उन्होंने इस कार्यक्रम के माध्यम से लाखों नए दोस्त इन विद्यार्थियों में पाए हैं.

उनके दिए संदेशों में सबसे मुख्य थे – अपने आप से ईमानदार रहने की आदत बनाना, आत्म-विश्वास सदैव कायम रखना तथा प्रतिस्पर्धा केवल और केवल अपने भूतपूर्व प्रदर्शन से करना. आत्म विश्वास के विषय में उन्होंने स्वामी विवेकानंद का हवाला दिया जो कहते थे कि “जब तक इंसान में आत्म-विश्वास न हो, सारे 33 करोड़ देवी देवताओं की कृपा भी उसको कोई लाभ नहीं पहुँचा सकती.” उन्होंने यह भी बताया कि ध्यान केन्द्रित करना सीखने से पहले इंसान को ध्यान हटाना सीखना पड़ता है अर्थात छात्र पढ़ाई पर 100% ध्यान तभी लगा सकता है जब वह अपने प्रदर्शन या भविष्य में क्या होगा, इस बात पर से अपने ध्यान को हटाए. यहाँ उन्होंने सचिन तेंदुलकर का उदाहरण दिया जो केवल और केवल आने वाली गेंद पर ध्यान देता था, यह भुलाकर कि पिछली गेंद कैसी थी या अगली गेंद कैसी होगी ? करियर के विषय में उन्होंने सलाह दी कि छात्र कुछ ‘बनने’ का ख़्वाब देखने से बेहतर ‘कुछ करने’ का ध्येय रखें तो बेहतर होगा. उन्होंने योग, प्राणायाम, अच्छी नींद तथा इत्तर रुचियों (other hobbies) के लिए भी समय देने का महत्व बताया. माता-पिता से उन्होंने गुज़ारिश की कि अपनी अधूरी आकांक्षाओं का बोज वे अपने बच्चों पर लादना बंद करें और अध्यापकों को उन्होंने आत्म-मंथन करने को कहा कि किस प्रकार तेज़ी से लुप्त होती गुरु-शिष्य परंपरा को पुनः जीवित किया जा सकता है.

यह चर्चा कितनी आवश्यक थी यह तो स्पष्ट हो गया जब सभी छात्र-छात्राओं ने पूरी चर्चा को ध्यानपूर्वक सुना और अंत में जब उन्हें पूछा गया कि उन्हें कार्यक्रम कैसा लगा तो सभी की गूँज एक आवाज़ में उठी. पर यहाँ छात्रों के दोस्त मोदी के परदे के पीछे राजनेता मोदी को नज़रंदाज़ करना भूल होगी.

आज का छात्र ही कल का नागरिक और मतदाता है, और भारत जैसे युवाशक्ति से भरे राष्ट्र में यही युवा मतदाता (प्रायः 12वीं कक्षा का विद्यार्थी 18 वर्ष का ही होता है) आनेवाले चुनावों का रुख बदलने की क्षमता रखता है, जिनमें 2019 का लोकसभा चुनाव भी समाविष्ट है. मोदी जी, जिनकी राजनैतिक सूझ-बूझ अपने समकालीन नेताओं में अद्वितीय है, इस बात को भली-भांति समझते हैं और यदि पिछले 3-3.5 वर्षों में उनके क़दमों पर नज़र डाली जाए तो यह और भी स्पष्ट हो जाता है. 2014 की जीत के बाद उनके आभार-भाषण में ही उन्होंने कहा था कि उनकी नज़र अगले 5-10 साल पर नहीं, आने वाले 15-20 वर्षों पर है, जहाँ अभी उल्लासपूर्वक (चाहे उसका अर्थ पूरी तरह समझे बिना ही क्यों नहीं) ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ के नारे लगाने वाला 3-4 वर्ष का बालक उनका और भारत का सेनानी बनेगा. ‘मन की बात’ के विभिन्न संस्करणों में भी प्रधानमंत्री जी समय-समय पर परीक्षा तनाव और अन्य विद्यार्थी-केन्द्रित विषयों का उल्लेख करते रहे हैं. पिछले वर्ष स्वामी विवेकानंद के न्यूयॉर्क भाषण की 125वीं जयंती पर मोदी जी ने अपने भाषण में बड़ी ही चतुराई-पूर्वक यह भी कहा था कि वेलेंटाइन डे जैसे उत्सवों के अंधे-विरोध के पक्ष में वे नहीं हैं, क्योंकि ऐसे उत्सवों के माध्यम से ही युवा पीढ़ी में रचनात्मकता पनपती है. नववर्ष 2018 की बेला पर भी उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने सन्देश में इस बात का उल्लेख किया था कि नई सहस्त्राब्दी में जन्में लोग भी इस वर्ष से मतदान करने के पात्र हो जाएंगे.

इसी श्रेणी में एग्जाम वारियर्स पुस्तक और अब इस ‘परीक्षा पे चर्चा’ को रख कर देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि युवाशक्ति से संवाद स्थापित कर उनके दिलों को जीतने की होड़ में मोदी जी अपने समकालीन तथाकथित युवा नेताओं (राहुल गाँधी, अखिलेश यादव आदि) से कोसों आगे हैं (योगी आदित्यनाथ एक हैं जो शायद उनके करीब आ सकते हैं- एग्जाम वारियर्स की हिंदी आवृति का ज़ोर-शोर से प्रचार भी आखिर वही कर रहे हैं). उनका संवाद, रूढीवादी, पुरातन और उबाऊ न होते हुए, सरल उदाहरणों और आज की पीढी की ‘ऑनलाईन-ऑफलाइन’ वाली भाषा से युक्त था और जहाँ पूरा संवाद परीक्षा तनाव के इर्दगिर्द घूम रहा था, वहीं कई स्थानों पर बड़ी ही सहजता पूर्वक सुननेवाले के मानस को अपनी विचारधारा के पक्ष में मोड़ने का प्रयास था- शुरूआत में ही सरस्वती, हनुमान और विवेकानंद का उल्लेख, मध्य में गुरु-शिष्य परंपरा को पुनः जागृत करने का सुझाव और अंत में तो कभी हार ना मानने के सम्बन्ध में सीधे सीधे जनसंघ और वाजपेयी जी का उदाहरण. वर्षों से पाठ्यपुस्तक से लेकर बाल दिवस तक (जो कि ‘चाचा’ नेहरु के जन्मदिवस पर मनाया जाता है) विद्यार्थी मानस पर जो कांग्रेसी विचारधारा की विषैली पकड़ थी, उसको तोड़ने के लिए मानो यह एक ब्रम्हास्त्र सा था.

इस मौलिक पहल से न केवल तात्कालिक चुनावों में लाभ होगा, बल्कि यदि युवामानस पर मोदी जी खुद की और अपनी विचारधारा की अच्छी छाप छोड़ने में सफल होते हैं, तो मरणोपरांत आज के इस युवा की वफादारी प्राप्त की जा सकती है (कुछ उसी तरह जैसे एक पूरी पीढी का समर्थन आज़ादी दिलाने वाले कांग्रेेेस के साथ था). परंतु सत्य यह भी है, कि पाश्चात्य-भक्त नौकरशाह पैदा करने वाली आज की शिक्षा पद्धति को पूरी तरह उखाड़ फ़ेंक कर उसकी जगह एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है जो राष्ट्रप्रेमी विचारक, नेता और वैज्ञानिक भारत माता के चरणों में अर्पित करे.

एक और कूटनैतिक कदम था शुरुआत में ही यह घोषित कर देना कि यह उनकी अक्षमता है कि वे भारत की समस्त भाषाओं में नहीं बोल पाते हैं और अतः प्रधानमंत्री जी ने अफसरों से निवेदन किया कि वे इस चर्चा का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध कराएं जिससे कि हर छात्र अपनी मातृभाषा में उसे सुन सके. प्रश्न पूछने वाले केवल सभागार में उपस्थित दिल्ली के छात्र ही नहीं थे, टी.वी के माध्यम से पूरे देश के कोने-कोने से छात्रों ने अपने प्रश्न प्रधानमंत्री जी के समक्ष रखे, जिन में दूर-सुदूर लदाख और उत्तरपूर्वी राज्यों के छात्र भी शामिल थे. अंत में मोदी जी ने तमिल को सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक बताया और उसे न बोल पाने के लिए खेद भी व्यक्त किया. इस तरह कुछ नेताओं को हिन्दी थोपे जाने का आरोप लगाने का मौका ही नहीं मिला.

मोदी जी ने इस ‘परीक्षा पे चर्चा’ के ज़रिए छात्र-छात्राओं का दिल तो जीत लिया, पर उनका समर्थन प्राप्त करने में उन्हें कितनी सफलता मिलेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

 

Dev Desai

Budding Medico @AIIMS. Avid newspaper reader (follow politics keenly; NaMo fan), foodie and an enthusiastic dabbler in the magical 'World of Words!'

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