Breaking News

छठ पूजा

बिहार के लिए महापर्व छठ पूजा एक ऐतिहासिक पर्व है जिसकी चर्चा रिग वेद, रामायण और महभारत जैसे सास्त्रों में भी मिलती है। आस्था, उमंग और सादगी का संगम छठ पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है और सूर्य भगवान की पत्नी उषा, जो लोक भाषा में छठि मैया के नाम से प्रचलित हैं उनकी पूजा की जाती है।  ऐसे वक़्त में जब ज्यादातर भारतीय पर्व सिर्फ उत्सव बनकर रह गए हैं, और आधुनिकरण ने त्योहारों से उनका मूल स्वरुप ही छीन लिया है। ऐसे में छठ पर्व आज भी अक्षुण्ण दिखाई पड़ता है। शायद, यही कारण है की एक बिहारी जिसने चाहे किसी भी प्रान्त या देश को अपना नया घर बना लिया हो और चाहे पुरे साल उसे अपने घर की याद भी ना आयी हो, पर साल के इस समय अपने आंगन से छठ घाट का रास्ता उसे बहुत याद आता है और ये याद उसे विचलित कर देती है अपने गाँव, अपने शहर की ओर मुड़ने के लिए।

चार  दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुवात नहाये-खाये से होती है। दूसरे दिन खरना होता है, खरना का शाब्दिक अर्थ खीर रोटी है, इस दिन छठि मैया को गुर की खीर, रोटी और फलों का भोग चढ़ाया जाता है और इस के बाद छठ व्रती व्रत ख़त्म होने तक निर्जला और निराहार उपवास रखते हैं। तीसरा दिन बड़े उत्साह का होता है जब सवेरे से ही प्रसाद बनने लगते हैं और बांस की फट्टियों से बीने छिट्टों में सब पूजा सामग्री और प्रसाद छठ घाट ले जाने के लिए तैयार किये जाने लगते हैं। छठ घाटों पर मेले सा माहौल होता है और शाम मे अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दे के उनकी पूजा की जाती है। अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसके साथ ही इस महापर्व का समापन होता है और प्रसाद खा के व्रती अपना व्रत खोलते हैं।

उगते और ढलते सूर्य की पूजा करने वाला यह एकमात्र त्योहार है।सूर्य जो इस संसार और समस्त जीवों की ऊर्जा का श्रोत हैं, छठ उनको श्रद्धा अर्पित करने का पर्व है। छठ व्रती सूर्य भगवान् और छठी मैया से अपने परिवार को कुशल मंगल रखने का आशीष मांगते हैं। छठ पर्व में शुद्धता का विशेष महत्व है और इसका ध्यान रखा जाता है।

छठ पर्व केवल धार्मिक आस्था की दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। विभिन्न वर्ग और जातियों के लोगों को सौहार्द से छठ घाट पे पूजा करते हुए देखा जा सकता है।छठ पूजा के प्रसाद का इंतजार हिन्दू धर्म को ना मानने वाले लोग भी उतने ही उत्साह से करते हैं। पूजा से पहले भी छठ घाट बनाने और घाट सफाई में समाज के हर समुदाय का सहयोग होता है और इसमें जातीय और धार्मिक बंधन कम ही दीखते हैं।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.