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चित्र भारती फिल्म महोत्सव का दूसरा संस्करण संपन्न

तीन दिनों तक चला चित्र भारती फिल्म महोत्सव का 21 फ़रवरी को पुरस्कार वितरण के साथ समापन हुआ। यह इस फिल्म महोत्सव का दूसरा संस्करण था। फिल्म महोत्सव में विभिन्न श्रेणियों में आई फिल्मों को पुरस्कृत किया गया। फिल्म डायरेक्टर श्री सुभाष घई, फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष श्री प्रसून जोशी, संगीतकार बाबुल सुप्रियों, विक्टर बनर्जी, स्क्रिप्ट राइटर के.वी. विजयेन्द्र प्रसाद, यू.वी. कृष्णन राजू, भोजपुरी गायक मनोज तिवारी, स्पाइस जेट के चेयरमेन श्री अजय सिंह ने विजेताओं को सम्मानित किया। निर्णायक मंडल ने पुरस्कार के चयन के लिए भारतीय संस्कृति और उसके मूल्य, राष्ट्रीय और सामाजिक जागरण, सकारात्मक कार्य, लोककला, पर्यावरण, सामाजिक समरसता और नारी सशक्तिकरण को आधार रखते हुए विजेताओं का चयन किया।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार तेलगु लघु फिल्म ‘कलारंगम’ के लिए श्री संजय को दिया गया। समिधा गुरु को मराठी लघु फिल्म ‘अनाहूत’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री वहीँ इसी फिल्म के लिए उमेश मोहन बागडे को सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्देशक का चित्र भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। एनीमेशन फिल्म की श्रेणी में ‘सोल्जर्स अवर सुपर हीरोज’ के लिए श्री अमृत और दीपक कुमार को सर्वश्रेष्ठ एनीमेशन फिल्म का पुरस्कार दिया गया। सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेट्री फिल्म के लिए ‘आई एम जीजा’ की निर्देशक स्वाति चक्रवर्ती को चित्र भारती पुरस्कार दिया गया। उमेश मोहन बागडे को मराठी फिल्म ‘अनाहूत’ के लिए सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार भी दिया गया। कैंपस ‘नॉन फिल्म स्कूल’ श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म तथा सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार ‘ड्रीम्स ऑन व्हील’ फिल्म के लिए वेदिका शुक्ला को दिया गया। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के दो पुरस्कार दिए गए, फिल्म ‘1633 कि.मी.’ के लिए सुश्री गरेन वार्जरी पनोर को और ‘दो घंटे की बात’ फिल्म के लिए पूजा पांडे को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों के पुरस्कार दिए गए।

इस अवसर पर श्री सुभाष घई ने बताया कि हमें उन फिल्मों को प्रोत्साहित करना है जो हमारे देश, कम्युनिटी, भाषा से जुड़ी हैं। सिनेमा एक एंटरटेनमेंट फर्म के साथ शिक्षक भी है जिससे हमारे अंदर के अबोध बालक को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन्होंने बताया कि हिंदी फिल्मों से लिए प्रयोग किया जाने वाला ‘बॉलीवुड’ शब्द वास्तव में अपमानजनक शब्द है जो लंदन में बीबीसी टेलीविजन चैनल वालों ने 1987 में उनकी फिल्म रामलखन की प्रीमियर पार्टी के कवरेज की स्टोरी में किया था कि यहाँ हॉलीवुड की हर चीज की नक़ल होती है, इनके पास अपना कुछ नहीं है। एक डेढ़ साल के बाद ‘बॉलीवुड’ एक मजाक बनते-बनते एक शब्द बन गया। फिर इसको मीडिया ने पिकअप कर लिया, फिर इंटरनेशनल लेवल पर लोगों ने और आज हमारे मार्केटिंग वालों ने उसको एक ब्रांड बना दिया है। उन्होंने आह्वान किया कि हम अपने हिन्दी सिनेमा, गुजराती सिनेमा, तमिल सिनेमा, बंगला सिनेमा को भारतीय सिनेमा कहें न कि ‘बॉलीवुड’ या ‘टॉलीवुड’ या कॉलीवुड । हम अपने बच्चों को अपने प्रांत, क्षेत्र, गांव की कहानियां बताएं जिससे की फिल्म जगत में जाने के बाद उसे वह चलचित्र के माध्यम से दुनिया के सामने ला पाएं। आज पश्चिम के मुकाबले भले ही यहां टेक्नोलॉजी कम हो लेकिन हमारे यहां विद्वता, ज्ञान तथा सास्कृतिक विरासत पश्चिम से कही अधिक श्रेष्ठ व संपन्न है।

केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष श्री प्रसून जोशी ने कहा कि लुप्त होती भाषा, लोक संगीत, लोक गीत, परम्परा को बचाना जरूरी है, यह हम सब की जिम्मेदारी है कि उसे बचाएं। शब्द बहुत महत्वपूर्ण होते है, नये शब्द आ जाएं इससे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन एसएमएस जैसे शब्द जो हमारे संदेश शब्द की हत्या करके आता है तो हमें सोचने की आवश्यकता है। हम ऐसी शब्दावली चाहते हैं जिसमे नये पुराने दोनो शब्द सहभागी रहे वे एक दूसरे को काटें नहीं। फिल्मों में अपनी संस्कृति को अभिव्यक्त करने के लिए पहले उस संस्कृति में जीना आवश्यक है। क्योंकि फिल्मों में वही परिलक्षित होता है जिस परिवेश में आप पले-बढ़े हों, जो आपके मन मस्तिष्क में बैठ गया है। इस तरह के आयोजन के माध्यम से हमारे देश में जो विभिन्न प्रान्त हैं, क्षेत्र हैं, उनके जुड़े हुए लोग, वहां से निकले हुए लोग फिल्में बनाएं और अपनी बात को कहें। जब वह अपनी बात को कहते हैं तो उसमें एक आभा होती है, उसमें एक अनुभूत सत्य होता है, जो आपके अंदर तक उतरता है और उसमें एक प्रमाणिकता होती है। कई ऐसे लोग होंगे जिन्होंने किसान नहीं देखा है, उन्होंने किसान सिर्फ फिल्मों में देखा है और वो फिल्मों में देखकर एक और किसान बनाते हैं। किसान के परिवार से निकलकर
एक व्यक्ति फिल्म नहीं बनाएगा तो उसका सत्य और उसके पैरों की जो दरारें हैं वो सामने नहीं आएंगी। इसीलिए इस तरह के आयोजनों का मैं स्वागत करता हूं।

श्री जोशी ने बताया कि जब हम बाहर जाते हैं और अपनी संस्कृति की बात करते हैं तो सिमट कर वह दो-चार चीजों में व्यक्त होती दिखाई देती है जिससे विश्व को ऐसा संदेश जाता है कि यह संस्कृति इतनी सी है। जबकि यह देश इतनी विविधताओं का देश है और इसका अतीत इतना सम्माननीय है, गौरवशाली है इसलिए वह अतीत कहीं न कहीं परिलक्षित होना ही चाहिए। यह नहीं होता है तो यह उस देश, व्यक्ति का ही नुकसान नहीं अपितु यह सारी मनुष्य जाति का नुकसान है कि एक सभ्यता जिसमें इतना कुछ कहने को है वो संकुचित होकर सिकुड़कर दो चार चीजों तक सीमित हो जाए।

श्री मनोज तिवारी ने बताया कि भारतीय चित्र साधना, चित्र भारती फिल्मोत्व उस ओर भारतीय सिनेमा को लेकर जा रहा है जब हर तीसरी चौथी फिल्म में भारत माता की जय के नारे सुनाई देंगे। समय के साथ-साथ सिनेमा का भी स्वास्थ्य खराब होता है जिसको ठीक करने के लिए चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हुई। उन्होंने बताया कई बार फिल्माए जाने वाले दृश्य, जब कोई चुटिया वाला आरती करते हुए किसी नायिका को गलत दृष्टि से देखता था तो बड़ा दुःख होता था और कभी-कभी सिनेमा बनाने वाले की सोच पर भी तरस आता था। अभी भी कभी-कभी ऐसा होता होगा। यहां उनके साथ बैठे सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि सिनेमा से संप्रदाय, जाति, समुदाय के आधार पर किसी की भावना को ठेस न पहुंचे यह सुनिश्चित हो।

श्री विक्टर बनर्जी ने कहा कि सांस्कृतिक रूप से भारत में एकरूपता है लेकिन कई बार हमारे नेता हमें भ्रमित करते है, मेरी दृष्टि में यह युनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ इंडिया है। यह विविधताओं भरा किन्तु सांस्कृतिक रूप से एक राष्ट्र है जिस पर हम सभी को गर्व है। चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल एक बहुत अच्छी शुरुआत है। भारत की विविधता भरी संस्कृति, लोक-जीवन, लोक-परम्पराओं तथा मूल्यों को विश्व के जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास यह चित्र भारती फिल्म उत्सव कर रहा है। श्री बनर्जी न बताया कि यह सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद संकट का काल है अगर हम फिल्मों के माध्यम से अपनी संस्कृति को प्रोत्साहित नहीं करेंगे तो अगले 15 सालों में आने वाली पीढ़ी तक इसको बचा कर रखना बहुत मुश्किल होगा। इस समय फिल्मों में भारत की सांस्कृतिक विरासत को आगे ले जाने में दक्षिण भारत की फिल्मों का योगदान सर्वाधिक है, इसके लिए वह प्रसंशा के पात्र हैं। उन्होंने अभी तक अपनी परंपरा, संस्कृति को सहेज कर रखा हुआ है। शेष भारत को भी इसे बचाने की आवश्यकता है।

श्री यू. .वी. कृष्णम राजू ने बताया कि चित्र भारती फिल्मोत्सव को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रयासरत रहेंगे। संगीतकार व गायक श्री बाबुल सुप्रियो ने बताया कि चित्र भारती फिल्मोत्सव अच्छे विचार और अच्छे संस्कार को फिल्मों के माध्यम से प्रोत्साहित कर रहा है। हम लोगों के विचार सही हों तो हम फिल्मों से बुरी बातों को बाहर रख सकते हैं।

चित्र भारती के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने सभी का धन्यवाद देते हुए बताया कि इस तीन दिवसीय चित्र भारती फिल्मोत्सव का यह समापन एक शुरुआत है। हम प्रत्येक जिले में जाने का प्रयत्न करेंगे, हर सप्ताह फिल्म का प्रदर्शन और चर्चा हो। दर्शकों का सामर्थ्य बढ़े और वह सामर्थ्य बॉलीवुड कहे जाने वाले सिनेमा को भारतीय सिनेमा में रूपांतरित करने को विवश कर दें।

Devanshu Mittal

Devanshu is a Mass Communication student from VIPS, IP University.

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