मातृशक्ति के सशक्तिकरण की बात आज हम करते हैं, लेकिन मातृशक्ति कितनी सशक्त है और क्या- क्या कर सकती है, कैसे कर सकती है? इसका अनुकरण करने लायक आदर्श देवी अहिल्याबाई ने अपने जीवन से हम सब लोगों के सामने रखा है। पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर की त्रिशताब्दी का यह वर्ष है। हमारे लिए आज की स्थिति में भी उनका चरित्र आदर्श के समान है। दुर्भाग्य से उनको वैधव्य प्राप्त हुआ। लेकिन एक अकेली महिला होने के बाद भी अपने बड़े राज्य को केवल सम्भालना नहीं, बड़ा करना और केवल राज्य को बड़ा नहीं करना, तो उसको सुराज्य के नाते उसका कार्यवहन करना। राज्यकर्ता कैसा हो वह इसका आदर्श हैं। उनके नाम के पीछे पुण्यश्लोक यह शब्द है। पुण्यश्लोक उस राज्यकर्ता को कहते हैं जो राज्यकर्ता अपनी प्रजा को सब प्रकार के अभावों से मुक्त करता है, दुःख से मुक्त करता है। एक तरह से प्रजा के प्रति अपने कर्तव्य से उऋण हो जाता है।
वास्तव में उस काल में हमारे यहां पर जो आदर्श राज्यकर्ता हुए उनमें से एक देवी अहिल्याबाई थीं। अपनी प्रजा को रोजगार मिले इसलिए उन्होंने उद्योगों का निर्माण किया और ऐसा पक्का निर्माण किया कि महेश्वर का वस्त्र उद्योग आज भी चलता है और बहुत लोगों को रोजगार देता है। प्रजा के सभी अंगों की, जो दुर्बल थे, पिछड़े थे उन्होंने उनकी भी चिंता की। अपने राज्य की कर व्यवस्था को उन्होंने सुसंय कर दिया। किसानों की चिंता की। सब प्रकार से उनका राज्य सुराज्य था। प्रजा की माता के जैसे चिंता करने वाली राज्यकर्ता, इस नाते उनको देवी अहिल्याबाई यह विधा उसी समय प्राप्त हुआ है।
उन्होंने जो काम किया वो अनेक प्रकार से विशेष है। राज्य को उन्होंने कुशलतापूर्वक चलाया। उस समय सभी राज्यकर्ताओं से उनके संबंध मित्रता के थे, इतना ही नहीं तो आसपास के सभी राज्यकर्ता भी उनको देवी स्वरूपा मानते थे। इतनी श्रद्धा और आदर उनके बारे में समकालीन राज्यकर्ताओं में था। राज्य पर कोई आक्रमण न हो, इसलिए समरनीति की जानकार के रूप में भी उनको जाना जाता है। बड़ी सेना लेकर राघोबा दादा आए थे, लेकिन उन्होंने अपनी नीति से और बिना संघर्ष के उस आपत्ति का निवारण कर दिया। ऐसी कुशल प्रशासक, उत्तम राज्यकर्ता, सामरिक और राजनयिक कर्तव्यों में माहिर राज्यकर्ता थीं, और केवल अपने राज्य की उन्होंने चिंता नहीं की पूरे देश की चिंता की।