नटबर राय
“इंडिया” नाम पर शुरू से आपत्ति रही है। सन 1949 में संविधान सभा में अनुच्छेद-1 पर हुए बहस में भी “इंडिया” नाम पर आपत्ति थी। तब से लेकर अब तक “इंडिया” नाम पर पूर्ण सहमति नहीं बन पायी है।
इंडिया’ के स्थान पर भारत, भारतवर्ष, आर्यावर्त, भारतभूमि एवं हिंदुस्तान जैसे सुझाव आये थे। इन नामों का सुझाव देने वाले अधिकतर नेता कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के थे। इसमें हरी विष्णु कामथ का नाम प्रमुख रूप से आता है जो फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे।
कांग्रेस पार्टी के नेता सेठ हरगोविंद दास के अलावा उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता गोविंद बल्लभ पंत भी ‘इंडिया’ नाम पर सहमत नहीं थे। पंत ने बहस के दौरान कहा था की ‘भारत या भारतवर्ष’ हमारे प्राचीन इतिहास तथा परंपरा के अनुसार युगों-युगों से इस देश का नाम रहा है। इनके समर्थन में और भी कांग्रेस पार्टी के नेता थे। इन सभी का ‘इंडिया नाम से परहेज था क्यों कि ये ‘इंडिया’ को गुलामी का प्रतिक मानते थे। नजीरुद्दीन अहमद भी संविधान सभा के सदस्य थे। इन्होने संविधान सभा में ‘इंडिया’ शब्द को हटाने के पक्ष में प्रस्ताव रखा था। परन्तु समय का आभाव और अंग्रेजों के दबाव के कारण इन मांगों को नहीं माना गया।
बता दें कि साल 2010 और 2012 में कांग्रेस के सांसद शांताराम नाइक ने दो प्राइवेट बिल पेश किए थे। इस विधेयक के माध्यम से उन्होंने संविधान से इंडिया शब्द को पूरी तरह से हटाने के लिए तर्क रखे थे। वहीं आज के समय में जब भारत का उदय विश्व शक्ति के रूप में हुआ तो क्यों न अपने अतीत के प्रभाव को सुधारे।
जब हम व्यवहारिकता में आते हैं तो आप ग्रामीण क्षेत्र में किसी से अगर अपने देश का नाम पूछेंगे तो ज्यादातर उत्तर, भारत ही होता है। कई लोग एसे हैं जो केवल भारत नाम से ही परिचित हैं, ‘इंडिया’ शब्द भी नहीं जानते। इसके लिए हमें उनकी भी भावनाओं का आदर करना चाहिए और ‘एक देश, एक नाम’ का मतलब ‘भारत’ होना चाहिए। अब राजनीति से ऊपर उठकर भारत नाम को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।
वहीं प्रश्न उठता है कि पाकिस्पातान की तरफ से तब क्यों नहीं आवाज उठाती थी जब तुर्की अपने संस्कृति का दुहाई दे कर तुर्की का नाम बदल कर तुर्किय कर देता है। लेकिन पाकिस्तान का दर्द समझ आता है क्यों की भारत आज एक उभरता हुआ विश्व शक्ति है और पाकिस्तान कंगाली के राह पर खड़ा है।
आज भारत पर किसी का दबाव नहीं है। भारत अपने गौरव शाली परंपरा को क्यों न बढ़ाये। जिस से आने वाले पढियों को अपने इतिहास पर गर्व हो। इस अमृत काल में अपने वैभव शाली परंपरा का क्यों न जयघोष किया जाये। जिस “इंडिया’ शब्द का उद्भव केवल गुलामी के समय हुआ हो, वह नाम हमारे देशवासियों के मस्तक पर कलंक के टीके के समान है। अब समय आ गया है की इस शब्द को मिटा कर अपने वीर शहीदों स्वतंत्रता सैनानीयों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें।
देश का नाम भारत ही होना चाहिए
हमे पराधीनता की निशानी नही चाहिए