— Written By – नटबर राय
जो व्यक्ति अपने महापुषों का सम्मान नहीं करता वो कभी अपने राष्ट्र का सम्मान नहीं कर सकता. DU की घटना इस को दर्शाती है.
DU में वीर सावरकर जी के मूर्ति के साथ हुई घटना, महान देश भक्त बाल गंगाधर तिलक जी का भी अपमान है. आज उन लोगों ने उस पवित्र आत्मा को भी रुलाया है, नेता जी जैसे महान आत्मा को भी रुलाया है, जो सावकर जी से प्रेरणा ले कर अपने देश की आजादी के लिए विदेश गए. शहीद भगत सिंह, अपने क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने से पहले उन्हों ने उन से मिलने रत्नागिरि गए थे व् सावरकर के विचारों से प्रभावित हुए थे तथा उन के किताब “माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ” का उन्होंने अनुवाद भी किया. आज उन पवित्र आत्मा को भी इन्होने रुलाया है. ये कुकृत्य सभी राष्ट्र प्रेमियों का अपमान है. तुम कितने भी कालिख पोत लो, पर उनका देश के लिए किए गए योगदान को देशप्रेमियो के दिलों से नहीं मिटा सकते.
अब मैं उन कांग्रेस के युवा विंग के नुमाईंदों से पूछना चाहता हूँ कि यदि वो इतने ही बुरे थे तो 1937 में उनके रिहाई के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेता कांग्रेस में शामिल होने का आग्रह करने उन से क्यों गए? आग्रह को सावरकर ने सिरे से ख़ारिज कर दिया तथा उन्होंने कहा “मैं उस कांग्रेस में शामिल कभी नहीं होऊंगा, जो तुष्टिकरण करके राष्ट्र के साथ धोखा कर रहे हैं”.
उन का मत ये था की “देश भक्तों की अंतिम पांति में खड़ा रहना पसंद करूँगा, बजाय उन लोगो की प्रथम पांति खड़े होने के जो देश साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं.” अगर वो 1937 में कांग्रेस से जुड़ गए होते तो वह किसी भी प्रमुख पद पर होते और इनके लिए वंदनीय होते. क्या देश के लिए योगदान देना सिर्फ कांग्रेस में शामिल होना ही माना जाता है? तो मंगल पांडे व उन जैसे असंख्य वीर जो राष्ट्र के लिए समर्पित हो गए बिना कांग्रेस में जुड़े, क्या इन को ये राष्ट्रभक्त नहीं मानते?
इतिहास के पन्नो में चंद्रशेखर आजाद जी की मुखबिरी करने का इशारा पंडित नेहरू पर ही जाता है, शहीद भगत सिंह जी को बचाने का पूरा प्रयत्न न करना भी इतिहास के पन्नों में दफ़न है. वे तो कांग्रेसी थे, इन के लिए दोहरा चरित्र क्यों ?
अब अपने प्रसंग को यहीं समाप्त करता हूँ व् युवाओ से अनुरोध करता हूँ कि अपने महापुरुषों का सम्मान करें. मैं इस देश का युवा होने के नाते DU मे हुए इस कुकृत्य की कड़ी निंदा करता हूँ.
जय हिन्द, जय भारत.