नई दिल्ली: पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत द्वारा विज्ञान भवन में आयोजित किया गया तीन दिवसीय व्याख्यानमाला चर्चा का विषय बना हुआ है. कहा जा रहा है कि 1925 में संघ की स्थापना के बाद पहली बार इस प्रकार का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम के पहले दिनSS उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त ने कार्यक्रम की भूमिका देते हुए कहा कि, “संघ इस प्रकार के कार्यक्रम हमेशा से ही करता रहा है. आकार और प्रकार में अंतर हो सकता है किन्तु सर्वसाधारण से सीधे संवाद के लिए इस प्रकार के आयोजन किए जाते है.” इसके बाद इस आयोजन के समय पर हो रही चर्चाओं पर विराम लगाते हुए बजरंग जी ने समझाया कि, “मैंने दिल्ली प्रान्त के अधिकारियों से पूछा कि इस व्याख्यानमाला के लिए आपने यही समय क्यों चुना. तो उन्होंने कहा कि भागवत जी के प्रवास की तिथियाँ केंद्र एक साल पहले ही तय कर देता है. उनके प्रवास के दौरान क्या कार्यक्रम किया जाए ये प्रांत ने बैठ कर तय किया है.”
कार्यक्रम के पहले दिन खेल, सिनेमा, राजनीति और जीवन के विविध क्षेत्रों से आए अभ्यागतों के सामने संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने व्याख्यान शुरू किया और बताया कि संघ आज एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा है इसीलिए उस पर चर्चाए होनी स्वाभाविक है. लेकिन वास्तविक स्थिति के आधार पर चर्चा हो ये आवश्यक है. उन्होंने समझाया कि संघ को समझने के लिए संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को समझना आवश्यक है. डॉ. जी जन्मजात देशभक्त थे. उनकी देशभक्ति का उदाहरण देते हुए भागवत जी ने कई प्रसंग सुनाए. इसके आगे भागवत जी ने कई दुसरे स्वयंसेवकों द्वारा स्वतंत्रता पूर्व कांग्रेस और अन्य संगठनो के साथ किए गए संघर्षों का विवरण दिया. यह एक भ्रान्ति है कि संघ में महिलाओं की कोई भूमिका नहीं है, सरसंघचालक जी ने बताया. उन्होंने तथ्य पेश किए कि संघ के अन्यान्य प्रकल्पों में महिलाओं की सक्रिय व प्रत्यक्ष भूमिका है. साथ ही राष्ट्र सेविका समिति का किस प्रकार उदय हुआ, इसका भी विवरण डॉ. भागवत जी ने दिया.
अगले दिन उन्होंने बताया कि संघ का केवल एकमात्र उद्देश्य है व्यक्ति निर्माण करना. वह होने के बाद स्वयंसेवक किसके साथ जुड़ के काम कर रहा है अथवा अपना कोई नया काम खड़ा कर रहा है, इसमें संघ की किसी बैठक से निर्णय नहीं लिए जाते. सालाना समन्वय बैठक का आयोजन किया जाता है, मगर कोई एक योजना बनाने के लिए नहीं बल्कि संघ के बाहर काम कर रहे स्वयंसेवकों को स्वयंसेवकत्व का वातावरण मिले इसीलिए. संघ की राजनैतिक आकांक्षाओं पर बोलते हुए उन्होंने बताया कि संघ का उद्देश्य है समाज को संगठित करना. ऐसे में राजनीति भी समाज के अनेक विषयों पर काम करती है और दलबंदी के कारण स्वाभाविक विरोध भी खड़ा होता है. लेकिन चुनावों और वोटों की इस राजनीति से संघ दूर है. लेकिन राष्ट्रिय महत्व और नीतियों पर संघ और स्वयंसेवकों के मत है इसीलिए हम उस पर बोलते है. भारतीय जनता पार्टी से रिश्तो पर भी सरसंघचालक जी ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि एक दल में ही अधिकाँश पदाधिकारी स्वयंसेवक है और राष्ट्रपति जी भी स्वयंसेवक है तो यह कयास लगाना कि नागपुर से फ़ोन जाता होगा और फैसले लिए जाते होंगे ये गलत है. जितना अनुभव मुझे संघ का है शायद उससे ज्यादा अनुभव कई राजनीतिज्ञ स्वयंसेवकों को होगा, उन्हें मुझसे सलाह या निर्देश लेने की कोई आवश्यकता नहीं है. समाजवाद और पूँजीवाद के मतभेद पर भी संघ की राय रखते हुए श्री मोहनराव बोले कि व्यक्ति का समाजहित से विरोध नहीं है. समाजवाद से व्यक्ति को दबाने की ज़रूरत नहीं है और व्यक्ति की उन्नति के कारण समाज में शोषण करने की ज़रूरत नहीं है. साथ ही उन्होंने ‘हिन्दू’, ‘हिंदुत्व’ और ‘धर्मं’ शब्दों की व्याख्या व इतिहास भी बताए. डॉ. आंबेडकर के संसद में हिन्दू कोड बिल पेश करने पर उन्होंने विरोधियो से पूछा कि, “आप धर्म को कोड मान रहे हो जो कि बदलता है और बदलना ही चाहिए. और मै भी कोड ही बदल रहा हूँ लेकिन धर्म कोड नही अपितु वैल्यूज है. वैल्यूज को मै नहीं बदल सकता.” अंत में सरसंघचालक ने आशा जताई कि कितने ही गहरे मतभेद हो, लेकिन सबका बैठ कर हल निकला जा सकता है, बशर्ते भारत का हित, पूर्वजों का गौरव और संस्कृति का प्रेम सभी के मन में हो.
तीसरे व अंतिम दिन संघ ने जिज्ञासा समाधान सत्र का आयोजन किया जिसमे अभ्यागतों द्वारा पिछले दो दिनों में पूछे गए सवालों के जवाब भागवत जी ने दिए. जिज्ञासा समाधान सत्र में हिंदुत्व, जाती व्यवस्था, शिक्षा, भाषा, गौरक्षा, कन्वर्ज़न, मुद्दों के अलावा आरक्षण, धारा 377, अल्पसंख्यक वर्ग, और ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ से जुड़े कठिन सवाल भी शामिल थे. डॉ. मोहनराव भागवत जी ने सभी प्रश्नों का सटीक व तथ्यागत समाधान दिए और दुनिया भर के सामने खुल कर संघ का स्टैंड स्पष्ट कर दिया. इस तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के समापन सत्र में बोलते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि, “संघ के बारे में कौन क्या कहता है, इस पर विश्वास मत रखिये. आप चाहे तो मैंने जो बोला उस पर भी विश्वास मत रखिए. आप संघ को अंदर से देखिए और फिर संघ के बारे में जो मत बनाना है वो बनाइये.”
जय श्री राम ।
जय श्री राम ।
जय श्री राम ।