ट्रेंड्ज़ के चलते भाषा का स्वरुप तेज़ी से बदलता जा रहा है| अब वह समय गया जब ‘दूरदर्शन’ या ‘आकाशवाणी’ पर बोले जाने वाली भाषा को आम भाषा
कहा जाता था ,अब तो उस भाषा को ‘अति –कठिन’ माना जाता है | यूँ तो बहुभाषिक होना एक गुण होता है परन्तु हर भाषा में अन्य भाषाओँ की मिलावट होने के कारण आज के “भाषिक खिचड़ी“ तैयार हो चुकी है |यह खिचड़ी बोलियों से लेकर देसी-विदेशी भाषाओं के मिश्रण से बनी है |
जैसा की हम जानते हैं भारत में अनेकों भाषाऐं एवं बोलियाँ बोली जाती है,हर प्रान्त की अपनी बोली है |इस बात में कोई दो राय नही यहाँ भाषाओँ का स्वरुप
तेज़ी से बदलता रहा है और आने वाले समय में और बदलेगा| इतिहास गवाह है यहाँ अरबी ,उर्दू ,अंगेजी ,फ्रेंच ,पोर्तोगीज़ आदि ने समय से साथ अपना घर बनाया है ,और अब वैश्वीकरण के कारण अन्य विदेशी भाषाओँ जैसे रुसी,जापानी, चीनी,कोरियन ,जेर्मन ,ग्रीक आदि को सीखने का प्रचलन बढ़ता
जा रहा है | बहुभाष का ज्ञान होना गलत नहीं है ,समयानुसार हर व्यक्ति को बदलना चाहिए परन्तु ‘पक्की रोटी फ़ेंक कर कच्ची रोटी खाने से मुहं का स्वाद तथा पेट दोनों ही ख़राब होते हैं। ’
भारत में ,खासकर शहरों में हिंदी या फिर अन्य भाषाओँ के शब्दों को हम अंग्रेजी के बीच मिला हुआ पाते हैं| अंग्रेजी आज विश्व सम्पर्क भाषा का बन चुकी है ,पर किसी सम्पर्क भाषा का काम किसी राष्ट्र में निजभाषा की नीव कमजोर करने का नही होता |भाषा मिश्रण की हद यहाँ आ गयी है की दो या दो से अधिक भाषाओँ को मिला कर बोलने का प्रचलन बढ़ता चला जा रहा है |जैसे , खा+ ing = खाईंग (यानि की खाना ) या फिर अंग्रेजी में ‘so’ की जगह हिंदी के ‘तो ‘ का प्रयोग करना |यही नही यह संक्रमण केवल बोलने तक सिमित नही रह गया है अब लिखने में भी दो भाषाओँ को मिलाकर लिखा जाता है जैसे ,
- so +शल = social
- मेन+go= mango
- di+ल्ली = Dilli
- bom-bay/bae=Bombay
स्कूल और कालेजों में लोग हिंदी या अन्य भाषाओँ को वैकल्पिक विषय के रूप में भी नही पढना चाहते है ,साइंस और कॉमर्स के क्षेत्र में तो अंग्रेजी माध्यम वालों को ही प्राथमिकता दी जाती है |अगर बात रोज्गार की करें तो सरकारी नौकरियों के इलावा निजी कंपनियों तथा एम.एन .सी (MNC) जगत में अगर आप काम करना चाहते है तो आपको अंग्रेजी आना अनिवार्य है,चाहे आप हिंदी ,पंजाबी ,मराठी ,बंगाली ,तमिल आदि किसी भी भाषा के लेखक,पत्रकार ,संपादक हो या अन्य किसी भी क्षेत्र में काम करते हो |अंग्रेजी के बिना आपको सौतेला ही समझा जायेगा|
कोई व्यक्ति आज मेट्रो से उतरने से पहले “do you have to get down” की जगह “क्या आपको उतरना है “ बोले दे तो सुनने वालो की प्रक्रिया ऐसी होती है मानो कोई अनजान भाषा सुन ली हो |कहीं बाहर खाने का आर्डर करना हो तो अंग्रेजी में ही दिया जाता है ,किसी से मिलने पर भी यही अपेक्षा की जाती है आप अंग्रेजी में बात करे |क्यों आज किसी से मिलने पर “नमस्ते” बोलना ,किसी का हाल पूछने पर “की हाल चाल” या “ केमोन आच्छो “ कहना ,अपनी खैरियत बताने पर “ ठीक बा “ बोलना , खाना खा रहें हैं के लिए “मी जेवल आहे “ कहना “ आउटडेटेड “ हो गया है |
देसी भाषा पढना बोलना आज एक टेबू माना जाने लगा है पर इन्ही भाषाओँ में कैप्श्न्ज़ लिखना ,टेटू बनवाना ,या कई बार साइन करना आपके “कूल “ होने की पहचान बन चुके हैं |
Bahut hi badhiya likha hai yashika