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व्यथित आत्माओं का सन्देश

प्यारे भारतीयों,

आप ये पत्र पाकर चौंक गए होंगे और शायद सोच रहे होंगे कि ये ‘व्यथित आत्माएं’ हैं कौन? हम उन लोगों की आत्माएं हैं, जिन्होंने फासीवादी और तानाशाह शासकों के अत्याचार सहे हैं, चाहे वे जर्मनी में हिटलर हो, या आपके अपने देश में आपातकाल हो. हाल ही में घटी कुछ घटनाओं ने हमें यह पत्र लिखने पर मजबूर किया है.

जब कुछ भटकती आत्माओं के ज़रिए हमें सुनने में आया कि भारत में फासीवाद या अघोषित आपातकाल व्याप्त है, तो हम चिंतित हो गए यह सोचकर कि मानवता के 1/6वें हिस्से का क्या हाल होगा? अतः, हमने थोड़ी जांच-पड़ताल की और इसके द्वारा जो हकीकत हमें मालूम हुई, उस से हमें शायद उतना ही दुःख पहुँचा जितना कि हमें हमारे जीवन काल में शारीरिक और मानसिक कष्ट भुगतते हुए हुआ था. एक तानाशाह के हाथों अपमानित किया जाना तो दुखदायी होता ही है, पर इस से अधिक कष्ट तब होता है, जब कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा आपके संघर्ष और पीड़ाओं का मखौल बनाया जाता है.

फासीवाद का एक बुनियादी हिस्सा होता है- विरोध के लिए कोई स्थान न होना. एक फासीवादी देश में, विपक्ष के समस्त नेता या सलाखों के पीछे होते हैं, या तो देश से भाग जाने पर मजबूर होते हैं या फांसी के तख्ते पर झूल रहे होते हैं. एक फासीवादी शासन प्रणाली किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होती, न संसद के प्रति, न ही न्यायालय के प्रति.

वर्तमान भारत में, विपक्ष के नेता देश के प्रधानमंत्री के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलते दिखते हैं, देश की न्याय-प्रणाली आए दिन सरकार को कटघरे में खड़ा कर फटकार लगाती है और नज़दीक के भविष्य में देश की सर्वोच्च अदालत की अगुवाई एक ऐसे न्यायाधीश करने वाले हैं जो कुछ महीनों पूर्व, सार्वजनिक तौर पर विरोधी सुर प्रकट कर रहे थे. सड़क पर चलते आम-आदमी से लेकर मुख्यमंत्री निवास में बैठे ‘आम-आदमी’ तक सब, देश के प्रधानमंत्री के विषय में जो मन में आए वह बोल रहे हैं, और किसी का बाल तक बांका नहीं हुआ, हमारी तरह कन्सेंट्रेशन कैंप में भेजा जाना तो दूर की बात है.

देश के टुकड़े करने वाले नक्सलियों के साथ जुड़े होने के संशय से जब पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार करने का प्रयास करती है, तब विभिन्न अदालतें न केवल गिरफ़्तारी पर रोक लगाती हैं बल्कि पुलिस को आड़े-हाथों भी लेती हैं. मध्यरात्रि के पश्चात भी देश के सर्वोच्च न्यायालय के द्वार देश की सरकार नहीं, देश के विपक्ष की गुहार पर खुल जाते हैं. देश के सत्ता-पक्ष से ताल्लुक रखने वाले किसी नेता के मुंह पर फासीवादी होने का आरोप लगाने वाली एक महिला कुछ ही घंटो में जमानत पर बाहर होती है. अगर नाम का भी फासीवाद होता देश में, तो बिना सुराग के गायब हो जाती वह.

हमारी आप से एक ही विनती है, अगली बार जब ‘फासीवाद’ या ‘अघोषित आपातकाल’ जैसे शब्द बोलने की इच्छा महसूस हो, तो दो घड़ी सोच लें. अगर आपके पास ऐसे शब्द बोलने की स्वतंत्रता है, तो प्रबल सम्भावना है कि इन शब्दों का प्रयोग अतिश्योक्ति से अधिक कुछ नहीं है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक सहेज कर रखने वाली धरोहर है, इसका सम्मान और सदुपयोग करें, तैश में आकर दुरूपयोग नहीं क्योंकि बिना सोचे समझे ‘फासीवाद’ या ‘अघोषित आपातकाल’ का प्रयोग करके आप न केवल भूतकाल, अपितु आने वाले कल के भी दोषी हैं. भेड़िया आया वाली कहानी याद है न? अगर इन शब्दों को आप ऐसे ही सहजता से उछालते रहेंगे, तो नारायण न करें, किसी दिन अगर सचमुच में फासीवाद आ भी गया, तब भी लोग विश्वास नहीं करेंगे.

सदैव आपका हितेच्छु,

व्यथित आत्माएं.

Dev Desai

Budding Medico @AIIMS. Avid newspaper reader (follow politics keenly; NaMo fan), foodie and an enthusiastic dabbler in the magical 'World of Words!'

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