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‘माँ’ की इच्छा के बिना ‘मातृभाषा’ कैसे?

हाय गायज़! (अंग्रेज़ी शब्द हाय व गायज़) आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा अभिवादन हुआ। लेकिन ‘नमस्कार’ पढ़ कर आपकी रूचि इस लेख से चली न जाए इसलिए लेखक को ऐसा करना आवश्यक लगा। दरअसल नमस्कार बोलना हमने सीखा ही नही। बचपन में जब माता जी पी.टी.एम. में साथ जाया करती थी तो टीचर कहती, “देखिए जी, आपका बच्चा खेल-कूद और साइंस में तो ब्रिलिएंट है लेकिन इंग्लिश में कमज़ोर है। इंग्लिश के बिना आजकल कुछ नही होता। आपको अपने घर का माहौल “इंग्लिश फ्रेंडली” बनाना पड़ेगा। माता जी ने ये बात सबको बताई और बस तभी से पिताजी समेत पूरा घर अंग्रेज़ी तोते का अड्डा बन जाया करता था। यदि माता जी चाहती तो उसी समय संघर्ष का बिगुल फूँक देती। इंग्लिश मैडम की हाँ में हाँ मिलाने की जगह उनसे मातृभाषा के प्रती इस तरह के व्यवहार के तार्किक कारण पूछ सकती थी। लेकिन नही। उन्हे बेटे के साइंस व खेल सफलताओं को नज़र-अंदाज करते हुए एक विदेशी भाषा के लिए बाकी सारी प्रतिभाओं को रद्दी बराबर बना दिया। भला अब वह बालक हिंग्लिश नामक ‘खच्चर’ पर सवार नही होगा तो क्या होगा।

अपने जीवन में हम सभी ने ऐसी किसी परिस्थिति का अनुभव ज़रूर किया होगा। वर्तमान में देखने को मिलता है कि माताएँ ही मातृभाषा से विमुख हो रही है। बच्चों को हिंदी वर्णमाला से पहले ए बी सी पढ़ाया जाता है। अभिभावकों द्वारा “ऐसा मत करो” नही बल्कि “डोंट डू दैट” कहा जाता है मानो किसी पालतू पशु को निर्देश दे रहे हो। देश के प्रबुद्ध लोग हिंदी के वैश्विक ‘विकास’ व ‘विस्तार’ पर चिंतन तो बहुत करते है लेकिन अपने ही घर में मातृभाषा दाने-पानी को मोहताज हो रही है इस पर नज़र नही डाली जाती। वर्तमान में माताएँ जिस तरह बालकों को गिनती भी अंग्रेज़ी में ही सिखा रही है तो हिंदी का पिछड़ना स्वाभाविक है। यह कहना गलत नही होगा कि अंग्रेज़ी का हौवा प्रसारित करना और हिंदी के प्रति रुझान को दबाना जिस प्रकार प्रचलित है, वह समय दूर नही जब हम केवल फ़िल्मों में ही हिंदी सुन पाएँगे। ऐसे में दुनिया के इतिहास में पहली बार कोई देश अपनी मातृभाषाओं की हत्या का आरोपी होगा।

लेकिन उमंग के साथ हिंदी की साधना करते हुए हमें विश्वास रखना चाहिए कि भारत की मातृशक्ति मातृभाषा के प्रति अपने दायित्व को समझ कर एक बार फिर देश को संकट से उबारेगी।

जय हिंदी! जय मातृभाषा!

Devanshu Mittal

Devanshu is a Mass Communication student from VIPS, IP University.

4 thoughts on “‘माँ’ की इच्छा के बिना ‘मातृभाषा’ कैसे?

  1. माँ-बाप अपने बच्चे को वही सिखाना चाहते है जिसमे बच्चे का कैरियर बने। और आज अंग्रेजी करियर की (बाजार की मांग) भाषा है।

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