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भारत के बारे में जानें: भारत का बने

–Written By Nitin Tripathi


दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं जिनकी सभ्य संस्कृति उनकी विरासत है। भारत,रोम,ग्रीस आदि। 

इटली, ग्रीस जाइए तो जगह जगह आपको उनकी सभ्यता का इतिहास फैला दिखेगा। यहाँ दुनिया के सबसे पुराने बैंक की बिल्डिंग है ,सात सौ साल पुरानी। यहाँ दुनिया का सबसे पुराना सीवेज प्लांट है दो हज़ार साल पुराना। यहाँ दुनिया का सबसे पुराना चौराहा है चार हज़ार साल पुराना। ऐसा नहीं कि यह देश बहुत अमीर हैं। लेकिन सभ्यता और इतिहास को संजोये रखने का जुनून है। 

फिर आते हैं अमेरिका जैसे देश। बमुश्किल चार सौ साल पहले तक पेड़ों पर लोग रहते थे। सौ साल पहले तक महिलाओं को वोट देने का अधिकार ना था। लेकिन हाँ समय के साथ अत्यधिक तेज़ी से उन्नति की, और आज विश्व का सबसे विकसित देश माना जाता है हर मायनों में। एक तो इतिहास नहीं ऊपर से जो कुछ है वह भी इतना शर्मनाक। कहीं काले गोरे लड़ रहे हैं तो कहीं कालों को यूँ ही खेल में फाँसी पर लटकाया जा रहा है तो महिलाओं के तो कोई अधिकार भी ना थे। फिर भी अमेरिका जाइए तो छोटे छोटे गाँवों तक में संग्रहालय बने हैं, बिल्डिंग बनी हैं, इतिहास है, जो है जैसा है उसमें अच्छे पन्नों को संजो कर पूरे चार सौ साल का  इतिहास बड़ी ख़ूबसूरती से पेश किया है। 

विश्व की प्राचीनतम सभ्यता जगत गुरु भारत। हम में अधिसंख्य इस बात को लेकर गौरवान्वित भी रहते हैं। लेकिन ना इस संस्कृति  को जानने का प्रयत्न करते हैं और ना ही इसे संरक्षित करने का। पाँच हज़ार वर्ष पूर्व मोहन जोदड़ों में ढकी हुई नालियाँ और शौचालय होते थे, इकीसवीं सदी में यह बात प्रधान मंत्री को समझानी पड़ी, जिसका अधिसंख्य अभी भी मज़ाक़ उड़ाते हैं। कट्टर वादी संस्कृति का शोर तो बहुत मचाएँगे पर ज्ञान वहत्सप से ऊपर का नहीं, जिसमें नबी प्रतिशत अध कचरा होता है। जिलों के जिले टहल आइए हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति छोड़िए सौ साल पुराना मकान ना मिलेगा। मुग़लों के कुछ इमारतें छोड़ दी जाएँ तो पूरे भारत में संस्कृति के प्रतीक चिन्ह सैकड़ों किमी में कहीं इक्का दुक्का सुरक्षित हैं, जिनके बारे में बग़ल के जिले तक में नहीं पता।

 ज़्यादा नहीं अपने अग़ल बग़ल की ही संस्कृति को सुरक्षित रखिए, ढूँढिए, उसके बारे में प्रचारित प्रसारित करिए और उसे इस लायक बनाइए कि वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेसेंटेबल फ़ॉर्मैट में दिखे – यही संस्कृति के प्रति आपका सबसे बड़ा कर्तव्य है।

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