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कुम्भ मेले का धार्मिक आधार एवं मान्यताएं

— Written By नटबर राय


कुम्भ मेला भारत में आयोजित किया जाने वाला विशाल हिन्दू तीर्थ है जो विश्व का सबसे बड़ा आयोजन है. इस में विदेश से भी पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं.

ये ४ स्थानों पर मनाये जाते हैं.

  1. प्रयाग – गंगा , यमुना और सरस्वती नदी के संगम तट पर .
  2. हरिद्वार – गंगा नदी के तट पर.
  3. नासिक – गोदावरी नदी के तट पर.
  4. उज्जैन – शिप्रा नदी के तट पर

कुम्भ मेला दुनिया में किसी भी अन्य धर्म की तुलना में लोगो को अधिक आकर्षित करता है. ये आध्यात्मिक मूल्यों के स्थायी विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है. जहाँ लोग जाती, पंथ, भाषा तथा क्षेत्रीय भेदों को भुला देते हैं. इस का दुनिया में कोई और उदाहरण नहीं मिलता. जिस प्रकार संस्कृतियों को जीवित रखने में मेलों और पर्वों का विशेष योगदान होता है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति को को जीवित रखने में कुम्भ का अहम योगदान है. न केवल हिन्दू संस्कृति का यह पुरे भारतवर्ष की समस्त संस्कृति के उन्नयन का प्रबल प्रतिक है. इसी प्रकार पर्व – त्यौहार जितने पुरातन मनाया जायेगा, उस की गाथा भी उतनी ही प्राचीन होगी.

इस लिए प्राचीन पर्व – कुम्भ की मान्यताओं वेद-पुराण में वर्णित किया गया है. ऋगवेद में ‘कुम्भ’ शब्द की व्याख्या करता हुआ एक विशेष मन्त्र है जिस को कुम्भ पर्व से जोड़ा जाता है. अथर्वेद , काण्ड-१९ , सुत्त -५३ का तीसरा मंत्र इस प्रकार है

”पूर्ण कुम्भोऽधि कालं आहितस्तं, वै पश्यामो बहुधानु संतः।

स इमा विश्वास भुवनानि प्रत्यंड, कालं तमाहुः परमे व्योमन्।।”


अर्थात, काल यानि समय के ऊपर भरा हुआ कुम्भ रखा हुआ है और हम उस घरे को विविध दिरिष्टियो से देखते हैं. वेदो में कुम्भ का सांकेतिक उल्लेख दिया है. इस से हम व्याख्या करते हैं. पुराणों के कथाओ में कुम्भ पर्व को विस्तार से वर्णित किया है की कुम्भ किस प्रकार प्रारम्भ हुआ. इस में ” श्रीमद्भागवत पुराण व स्वंध पुराण ” की कथा प्रमुख है. जो हमारे कुम्भ के प्रति धार्मिक मान्यताओं को स्थापित करता है.

” श्रीमद्भागवत पुराण ” में सागर-मंथन की जो कथा है वह अन्य पुराणों में लगभग समान है. इस कथा में देवासुर संग्राम से अमृत प्राप्ति  को लेकर सागर मंथन पूर्ण हुआ.  

पुराणों के अनुसार:-सागर मंथन से १४ रत्न प्राप्त वह ये हैं –

  1. कालकूट विष
  2. कामधेनु गाय,
  3. कल्पवृक्ष,
  4. पारिजात वृक्ष,
  5. कौस्तुभ मणि,
  6. उच्चैश्रवा अश्व,
  7. ऐरावत हाथी,
  8. रंभ अप्सरा,
  9. वारुणि,
  10. लक्ष्मी,
  11. चंद्रमा,
  12. शंख,
  13. वैद्यराज धन्वंतरि तथा
  14. अमृत प्राप्त हुए.

जिस में ” विष” से समस्त ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया. तभी शिव जीने विष पी कर सम्पूर्ण संसार का भय दूर किय. परन्तु अमृत को लिकर देवताओ व् असुरो में पुनः विवाद शुर हो गया. इस कारन अमृत कुम्भ से देवलोक तथा भूलोक के कुल १२ सथानो पर किसी छलक के गिरा. इस के बारे में दो-तीन पुराणों की कथा प्रमुख हैं . आचार्य बृहस्पति के संकेत पर इंद्र के पुत्र जयंत , अमृत घट छीनने में सफल हुआ. और वह ब्रह्माण्ड में चारो ओर भागने लगा तभी असुर भी उस के पीछे भागने लगा तथा बारह दिन तक दोनों में संघर्ष होता रहा. इसी क्रम में , देव लोक के ८ स्थान तथा भूलोक के ४ स्थान पर अमृत की बुँदे गिरी. जिस पल ये अमृत कण भूलोक पर गिरे  उस समय को नक्षत्र के योगों से मिलान करके चारों स्थान को अमृत तुल्य कुम्भ-तीर्थ का नाम दिया. यहाँ कुम्भ महापर्व सुरु होगया. इस प्रकार की कथा ”स्कंध पुराण” में भी देखने को मिलता हैं. ”विष्णु पुराण ” के आधार पर , एक हजार कार्तिक स्नान , एक सौ माघ स्नान और एक करोड़ बैशाख स्नान से प्राप्त फल एक कुम्भ सनान के बराबर होता है. भिन-भिन स्थानों पर अलग – अलग नक्षत्र योग से अमृत गिरने के कारण से खगोल दृष्टि भी प्राप्त होता है. खगोलशासत्री के अनुशार व् ये ”स्कंध पुराण” में भी निहित है.

“पद्मिनी नायके मेषे कुम्भ राशि गते गुरो।
गंगा द्वारे भवेद्योग कुम्भनान्मातदोत्तमः।।”

अर्थात, सूर्य मेष राशि कुम्भ राशि में हो और बृहस्पति कुम्भ राशि में प्रविष्ट हो चूका हो तब ”हरिद्वार” में पूर्ण कुम्भ का योग बनता है , ”प्रयाग” में जब सूर्य मकर राशि में और बृहस्पति वृष राशि में तथा माघ मास को होता है , ”उज्जैन” में जब सूर्य मेष राशि में तथा बृहस्पति सिंह राशि में होती है , ”नासिक” में जब सूर्य और बृहस्पति दोनों ही सिंह राशि में होता है. इस के अतिरिक्त ”उज्जैन” में १० अन्य योग आता है जब बृहस्पति के सिंह राशि में होने पर ”सिंहस्थ” होता है , तथा नासिक में पूर्णिमा की तिथि व् दिन बृहस्पतिवार होना भी एक अनिवार्य है. इ चारों कुम्भ में बृहस्पति की भूमिका प्रमुख है. अर्थात बृहस्पति ४३३३२.५ दिनों अथवा ११ वर्ष ११ महीने और २७ दिन में सभी १२ राशियों का परिक्रमा पूरी करते हैं, इस कारन ४८ कुम्भ में इस की परिक्रमा ६ वर्ष पूर्व पूर्ण हो जाता है. इस लिए प्रत्येक शताब्दी में कोई न कोई एक कुम्भ, हर ८वा कुम्भ १२वर्ष के स्थान पर ११वर्ष में ही हो जाता है.

अतःधार्मिक शास्त्रों के मान्यताओं के आधार पर १४४वर्ष के बाद स्वर्ग में भी कुम्भ का आयोजन होता है जिस को पृथ्वी पर महाकुम्भ के रूप में मनाया जाता है. पृथ्वी और चन्द्रमा अपने पथ पर घूमते रहते हैं. और एक संपूर्ण ऊर्जा मंडल तैयार करता है तथा पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने के कारण केंद्र के बाहर की ओर ”अपकेंद्रीय बल ” के कारण एक ऊर्जा उतपन्न होती जो पृथ्वी के ० से ३०अंश अक्षांश पर मुख्य रूप से ”लंबवत व् उर्ध्व ” दिशा में कार्य करती है तथा जब ११अंश अक्षांश पर वह ऊर्जा बिलकुल ऊपर की ओर कार्य करती है, इस कल के योग को हमारे आचर्यों , गुरुओ तथा योगियों के गुना -भाग करने से जिस स्थान पर इस ऊर्जा का खास प्रभाव होता है , उस नदियों का संगम स्थान तय करा जाता है. प्रायः यह योग ”प्रयाग” में ही परता है. २००१ में भी यह योग ”प्रयाग” में ही हुआ था.

कुम्भ के धार्मिक मान्यताओं के बारे में इतिहासकार का मानना है :-

  1. चीनी यात्री ह्वेनसांग ( ६२९ BC से ६४५ BC तक भारत भ्रमण ) – हर्षवर्धन सं ६०६ BC में कान्य-कुब्जेश्व्र के महाराजा बने थे. उन्ही के शासन के दौरान ६३४ BC में ”प्रयाग” में कुम्भ मेला लगा था जहाँ राजा हर्षवर्धन ने अपना सर्वस्व दान करदिये. यह पहला दस्तावेज कुम्भ मेला का प्रमाण है की यह कुम्भ मेला २००० वर्षो से भी अधिक पुराण है.
  2. कुम्भ का वर्णन , महाराजा हर्षवर्धन जी के द्वारा लिखे किताब ”प्रयागदीप” में भी है.
  3. दिलीप रॉय द्वारा निर्देशित पहली बंगाली फ़िल्म है जिस में कुम्भ मेला को दस्तावेजीकरण किया है. इसे १९८२ में दिखाया गया.
  4. १७वी शताव्दी के फर्शी भाषा की एक पुस्तक ” दबिस्तान – ए- मुजाहिब” में भी कुम्भ का वर्णन है.
  5. नासिक में खुदाय के दौरान एक ताम्रपत्र मिला था जिस में कुम्भ मेले का प्रमाण निहित था.
  6. एक कहानी का प्रमाण जो गुजरात के संत महामति प्राणनाथ के अनुशार हरिद्वार में सन१६७८ कुम्भ के दौरान अपने तमाम शिष्यों के साथ सम्लित हुए थे तथा विद्व्ता के बल पर उन्होंने अपने ”निष्कलंक बुद्ध” की पदवी को प्राप्त किये.    
  7. कुम्भ मेले को ङेस्क ने भारत की सांस्कृतिक विरासत के रूप में मन है

२०१९ में संगम नगरी प्रयागराज में अर्धकुम्भ है जो मकर संक्रांति के दिन से शुरू हो गया है. हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इस योग में पवित्र नदी में स्नान व् तीन डुबकी लगाने मात्र से सरे पाप धूल जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती हैं.

२०१९ कुम्भ मेला में स्नान का योग :-

  • मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान ) —   १५-०१-१९
  • पौष पूर्णिमा —   २१-०१-१९
  • पौष एकादशी स्नान —   ३१-०१-१९
  • मौनीअमावस्या ( दूसरा शाही स्नान ) —   ०४-०२-१९
  • बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान ) —  १०-०२-१९
  • माघी एकादशी —   १६-०२ १९
  • माघी पूर्णिमा —  १९-०२-१९
  • महाशिवरात्रि —   ०४-०३-१९

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